शनिवार, 20 जून 2015

इस योग का मतलब क्या?

बाबा! इस योग का मतलब क्या?
शब्दार्थ
योग शब्द युज् धातु से बना है, यज् से नहीं। यज् से यज्ञ होता है। युज् मतलब जुड़ना, इसी धातु से भाव वाचक योग शब्द बना है। इसलिये योग शब्द का इससे अलग वस्तुतः अपना कोई अर्थ नहीं है। जैसा प्रसंग, वैसा अर्थ ।
हो भी यही रहा है। अभी यह राजनैतिक योग है, सतही, हंगामेदार, व्यापक प्रचार-प्रसार वाला एकदिनी। इसमें बड़ी बात है कि इतने लोग एक साथ कुछ करेंगे तो विरोधियों में भय का योग होगा। घृणा प्रधान, व्यायाम प्रधान, मानसिक-वाचिक तपरहित, श्रद्धारहित, बुद्धिभ्रष्टक, उग्र हिंदुत्व की कक्षा वाला योग होगा क्योंकि इस धारा का ही इस समय सत्ता में योग है। 
खैर एक भूल/कपट का सुधार करना पड़ा है। संघ वालों ने ‘‘सूर्य नमस्कार’’ नाम को स्वीकार कर लिया। पहले तो उन्होंने इसका नाम भी बदल रखा था।
चर्चाएं कई हैं। किसी ने कहा बाबा रामदेव जी के जन्मदिन पर आयोजित है। मुझे इस पर भरोसा नहीं हुआ।  बाबा रामदेव जैसे शुद्ध व्यवसायी और निष्ठा हीन व्यक्ति के लिये भाजपा इतना करेगी??? इघर बी.एन. मिश्र जी ने बताया कि पूर्व संघ प्रमुख हेडगेवार जी के जन्मदिन पर यह आयोजित हो रहा है। इनका योग के प्रचार7प्रसार में क्या योग दान???? मुझे तो कुछ नहीं मालूम। यह है संयोग, राजयोग, गुप्तयोग का मिश्रित योग।
गलती तो पहले ही हुई जब हठयोग के आंशिक पक्ष को ही योग नाम दिया जाने लगा कि कम से कम कुछ लोग इसी बहाने, स्वास्थ्य रक्षा के लिये ही सही इधर आकृष्ट होंगे। ईमानदार लोगों ने स्वास्थ्य रक्षा के नाम पर लोगों का ध्यान तो आकृष्ट किया लेकिन परंपरा की रक्षा करते हुए योग के अन्य पक्षों पर पूरा ध्यान दिया और ध्यान योग, भक्तियोग, कुंडलिनी योग, लय योग, स्वरयोग, नाद योग आदि को आगे बढ़ाया। राजनीति और उसके साथ दवा एवं उपभोक्ता सामग्री आदि के व्यसाय को नहीं जोड़ा। आयुर्वेद उनका अंग नहीं रहा। राम कृष्ण परमहंस तथा उनके,  शिष्यगणों, महर्षि रमन, स्वामी शिवानंद के प्रमुख शिष्यों, स्वामी कैवल्यानंद, स्वामी प्रणवानंद, परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरि, दक्षिण के गृहस्थ योगाचार्य श्री ......... अय्यर आदि असली साधकों ने किसी ने योग को व्यवसाय या राजनीति के साधन के रूप में इश्तेमाल नहीं किया।
इसके विपरीत आर्यसमाज, उससे निकली धाराएं, जैसे- गायत्री परिवार आदि ने कार्यकर्ताओं के आर्थिक संरक्षण के लिये दवा एवं उपभोक्ता सामग्री आदि के व्यसाय को समानांतर कार्यक्रम के रूप में जोड़ा। इसके बाद इस शैली को आशाराम आदि सभी बाबाओं ने अपनाया। बाबा रामदेव ने इसे कारपोरेट कल्चर दे आकार दे दिया।  राजनीति के मामले में अभी हाथ पैर मार रहे हैं। देखें!! सत्तायोग उनके भाग्य में है या नहीं??
योग साधना वाले गीता आदि में वर्णित राजयोग में तो उनकी रुचि ही नहीं।

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