रविवार, 8 सितंबर 2013

सनातन धर्म समझ में क्यो नहीं आता?

सनातन धर्म समझ में क्यो नहीं आता?

समझ में इस लिये नहीं आता कि हम समझना नहीं चाहते। अपनी-अपनी सुविधा से उसे मानना मनवाना चाहते हैं। अपनी सुविधा वाले मामले को ही असली और दूसरे को नकली कहना और साबित करना चाहते हैं। चूंकि अनेक लोग ऐसा करते हैं इसलिये फिर भी सनातन धर्म की विविधता बनी और बची ही रह जाती है। यही तो है सनातन धर्म का मूल स्वरूप।
धर्म शब्द के कुछ व्यापक अर्थ हैं, जैसे-
क- स्वभाव, अग्नि का स्वभाव है जलाना, गर्मी देना। यह किसी के अस्तित्व के साथ ही सहज होता है।
ख- कर्तब्य- यह नैतिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि मानदंडों पर आधारित होता है। यह मानव द्वारा समय एवं क्षेत्र के अंतर से सांदर्भिक रूप से निर्धारित होता रहता है। इसमें संशोधन भी होते हैं।
ग- व्यवस्था- इसके अंतर्गत अनेक प्रकार की व्यवस्थाएं आती हैं।
घ- अतीन्द्रिय अनुभव, सृष्टि के संचालन के सिद्धांत। इसके विभिन्न सिद्धांत हैं। मन एवं सृष्टि को जानने तथा उसे नियंत्रित करने के अनेक उपाय भी इसके अंतर्गत आते हैं। 
पहला अर्थ दूसरे , दूसरा अर्थ तीसरे एवं तीसरा चौथे का आधार है। ऐसा न मानने पर जो कोई भी निर्णय होता है वह आधार हीन से अनेक प्रकार की उलझनें एवं विसंगतियां पैदा करता है। मनुष्य जब जिस संदर्भ में सत्य एवं स्वभाव के अनुसार कर्तब्य का निर्धारण करता और व्यवस्था बनाता है तब इन सभी स्तरों पर संगति बनती है और उसमें सफलता भी मिलती है। जब कभी इस सहज सत्य को छल या बल के आधार कोई नकारता है वह वस्तुतः निराधार होता है।
भारत में धर्म शब्द का प्रयोग जब इन सभी अर्थों में होता है तब आप किसी एक छोटे ही अर्थ तक उसे कैसे संकुचित कर सकते हैं? ऐसा करना अपने आप को ठगना है। जी हां, ठगी दोनो स्तर पर होती है। अपने ज्ञान की सीमा को न मानना, अपनी पसंद या परंपरा को दूसरे पर लादना, धर्म के नाम पर छल एवं बल के प्रयोग की छूट देता है। जब भी कोई आधार भूत बातों के बल पर उसे चुनौती देता है वह हिलने लगता है। 
यह है सनातन धर्म की व्यापक, सच्ची और उदार समझ। इसीलिये यह सनातन है। इस कुंजी से आप अनेक ताले खोल सकते हैं। मर्जी आपकी आप किधर जायें। कोई भी सवाल सामने रख कर अजमा सकते हैं। उत्तर में संगति न बैठे तो समझिये कि कहीं गड़बड़ है।

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