मंगलवार, 20 अगस्त 2013

भारत को समझने की उदारता

भारत को समझने की उदारता - किश्त 1
भारतीय संस्कृति को दिल एवं दिमाग की उदारता के साथ ही समझा सकता है। इसे समझने का न कोई शार्ट कट है, न नपा तुला फार्मूला। इस उदारता के अनुरोध में कुछ प्रश्न और कुछ उत्तर प्रस्तुत हैं। आप भी विचार कर सकते हैं।
कार्यक्रम बड़ा या उसका समय
यह प्रश्न मेरे मन में बहुत दिनों तक घूमता रहा। अनेक ऐसे कार्यक्रम होते हैं जिनके समय का निर्णय करना बहुत कठिन होता है। खाश कर वैसे कार्यक्रम जिन्हें हर साल सही समय पर दुहराना होता है। ऐसे कार्यक्रमों में व्रत, पर्व, उत्सव, श्रद्धांजलि, श्राद्ध, जयंती, जन्मदिन आदि होते हैं। जो मामले धर्म के साथ जुड़े रहते हैं, उनके मामले में तो तिथि एवं मूहूर्त अर्थात छोटी अवधि के निर्णय की जिम्मेवारी कर्मकांडियों और ज्योतिषियों के मत्थे फेंक कर, उनका मजाक बना कर अन्य लोग निश्चिंत हो जाते हैं लेकिन यह समस्या तो व्यापक है।
कोई भी व्यक्ति पैदा चाहे जब हुआ हो, उसके पैदा होने का काल ठीक-ठीक वैसा ही दुबारा कहां आने वाला? यह तो असंभव जैसा है। इतना ही नहीं जब रिकार्डेड और गैर रिकार्डेड तौर पर जन्म काल भिन्न हो तो प्रेमी , मित्र, अनुयायी सब फंस जाते हैं कि बधाई किस दिन दें।
मैं अपना ही उदाहरण देना चाहता हूं। जन्म पत्रिका के अनुसार आषाढ़ शुक्ल द्वितिया को मेरा जन्म हुआ है। मुझे इतना ही याद रहता है। मेरे घर के बधाई प्रेमी लोगों ने अंगरेजी कलेंडर के अनुसार 8 जुलाई ढूंढ निकाली, सरकारी रिकार्ड में मास्टर साहब ने कुछ और लिख दिया, उनका हिसाब वे जानें। साल तो ठीक है पर तारीखें सभी अलग-अलग आती हैं। क्या मैं इस समस्या के लिये किसी को दोषी ठहरा सकता हूं, नहीं। जब साल की गणना के भौतिक/खगोलीय आधार ही अलग हों तो साल भी अलग अलग चलता ही हैं। जब साल अलग तो तिथियां भी अलग। इसमें संगति बनाने की कोशिश करनी पड़ती है, फिर भी संगति नहीं बैठ पाती। मुझे सुविधा एवं संस्कार के कारण विक्रम संवत वाली तिथि याद रहती है, मेरे पुत्र को 8 जुलाई और पत्नी को दोनो लेकिन मेरा जन्म तो किसी एक निश्चित समय पर ही हुआ होगा। ऐसी अन्य दुविधाएं भी होती हैं, उन पर बाद में लिखूंगा।

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