मंगलवार, 6 अगस्त 2013

श्मसान में उत्सव

श्मसान में उत्सव
परसों रविवार दिनांक 4 अगस्त 2013 को मेरे जीवन में दूसरी बार श्मसान में उत्सव का अनुभव हुआ। मैं ज्योतिष का छात्र नहीं हूं अतः इसे किसी मुहूर्त की परिभाषा में नहीं कह सकता फिर भी यह कैसा अचरज कि अपने जीवन में सदैव हंसते-हंसाते रहने वाले स्व. शिवकुमार पाठक का शव ले कर जैसे ही हम श्मसान घाट पर प्रवेश कर ही रहे थे कि हमारा ‘राम नाम सत ह’ै की आवाज बैंड बाजे की आवाज में गुम हो गई। ट्रैक्टर पर बैंड बाजा तो बज ही रहा था उस पर लगे माइक से भी समानांतर रूप से फिलमी गाने का प्रसारण हो रहा था सभी मस्ती में।
हमने जैसे ही जमीन पर अर्थी रखी तब तक एक और बैंड बाजे के साथ अर्थी पहुंची , फिर एक और। इसके बाद सभी बैंड ग्रुपों में प्रतियोगगिता शुरू हो गई और वह भी नियम तोड़। अर्थात आम तौर पर बैंड वाले चिता से कुछ दूरी पर रुक कर बैंड बजाते हैं लेकिन आज इनमें से 2 बैंड वाले तो चिता के सिरहाने ही बजाने लगे और हटने का नाम ही न लें। सभी को शायद अच्छी बक्शीश पाने की होड़ लगी थी। वहां शेड के अंतर्गत  ऐसी भीड़ लगी कि साथ आये लोगों के बीच धक्कामुक्की जैसी स्थिति बन गई। पेशेवर फोटोग्राफर भी परेशान। नीचे पड़ी अंगारे वाली बुझी चिताओं पर से भी लोग बेहिचक आ जा रहे थे। कुछ लोग तो बिना तनाव के मति भ्रम में पड़ने लगे कि किस चिता के लिये कौन सी लकड़ी है। बैंड की आवाज में न तो पंडित जी का मंत्र, न डोमराजा की बात, न सगे संबंधियों की आवाज, कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। कुछ देर के लिये अफरा तफरी रही।
स्व. पाठक जी के दामादों ने बेल एवं आम की लकड़ी का इंतजाम तो 9 मन का किया था परंतु उसमें ठीक से आग सुलगाने की चिंता ही नहीं की। सभी अपने कारोबारी गप में जैसे ही व्यस्त हों चिता जले, फिर बुझे स्व पाठक जी ने शायद सोचा होगा कि कोई परवाह नहीं कुछ देर तक मैं भी मुफ्त वाले बैंड बाजे का आनंद क्यों न लूं? खैर मुझे भागना था तो मैं ने खुद ही हाथ लगाया कि बस अब और नहीं आप जाइये। फिर से चिता को प्रज्वलित करवाया। जब तक चिता जलती रही आनंद का माहौल रहा। न क्रंदन, न चीत्कार न लेन देन का झगड़ा। हां, एक 75-80 साल के सज्जन अपने मित्र के पहले प्रयाण पर दारू पी कर चिंता भूमि में ही भस्माच्छादित हो कर अपने मित्र को पूरे दम से कोस रहे थे और उसे देख लने की धमकी दे रहे थे। उनका हाफ पैंट एवं शर्ट देख कर लग रहा था कि वे रिटायर्ड सिंपाही हों या किसी ने वैसा कपड़ा दे दिया हो। ऐसा अनुभव बिरला ही होता है। ज्योतिषी गण शोध कर सकते हैं- समय 11 बजे दिन से अपराह्न 2 बजे तक।

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