शनिवार, 6 सितंबर 2014

आज उत्सव-प्रधान अनंत व्रत है

किसी व्रत या उत्सव में सम्मिलित होने का सुख अलग होता है और उसे समझने का अलग। आप चाहें तो दोनों का सुख लें या किसी एक का।
रामनवमी और अनंत चतुर्दशी हमारे यहां सुविधाजनक व्रत हैं। इसमें उत्सव मनाने, खुश होने और खाने-पीने का व्रत अर्थात दृढ़ संकल्प लिया जाता है कि हम प्रसन्नतापूर्वक इस अवसर पर पूआ-पूड़ी और अनंत के समय सेवई खायेंगे। मात्र दोपहर तक का व्रत। प्रातःकाल से सफाई, नदी में स्नान, पूजा पाठ की तैयारी, खानेपीने की व्यवस्था, औरतों का सजना संवरना और अनंत पूजा के साथ कथा श्रवण। आ गई दोपहर, बस खा पी कर प्रसन्न हो जाना। पहले गांवों में हाथ से सेवई बनाने का काम पहले ही शुरू होता था। हमें उसी से पता चल जाता था कि अनंत व्रत आने वाला है।
इसमें सेवई का बहुत महत्त्व है। यह न केवल खाद्य सामग्री है अपितु पूरा सांस्कृतिक बिंब है। शिक्षा एवं ज्ञान की पहली है। इसके बिना न बोध कथाएं पूरी होती हैं न पंचतंत्र। यह मगध के अपमान-सम्मान का बिंब हैं। गौर करने पर पता चलता है कि अनंत व्रत की महिमा भी अनंत जैसी है। 
और सबसे बड़ी बात यह कि अनंत से डरने की जरूरत नहीं। अनंत को भी एक हद तक तो समझा जा ही सकता है। जो भी आदमी अनंत की खोज में है, उसे क्षीर समुद्र के मंथन जैसा प्रयास करना पढ़ता है, तभी उसे अनंत फल मिलते हैं। आप भी जाहें तो ऐसा कर सकते हैं।
इसके लिये आपको अपनी समझ की सीमाओं को पहचानना होगा। सामान्य देशी आदमी की देशी समझ देशी अवधारणाओं पर निर्भर होती है। उस प्रकार 14 भुवनों की सीमा में ही हमारा व्यावहारिक अनंत सीमित है। व्यवहार के लिये अनंत को भी स्पष्ट करना होता है, तभी धर्म, कर्म, व्रत, उत्सव, संस्कार, संबंध, दायित्व आदि व्यवहारों में सही गलत का निश्चय हो पाता है। 
लोगों ने एक समय उन्मुक्त चिंतनों की दुविधाओं एवं विविधताओं से परेशान भावप्रधान आम जनता को मानने की सुविधा प्रदान की और 14 भुवनों की लगाई गई गांठ को ही देवता का विग्रह माना। आधुनिक उदाहरण लें तो जैसे गुरु ग्रंथ साहिब गुरु हैं, वैसे ही 14 भुवनों की सीमा की पक्की गांठ रूपी पुरुषार्थ का आधार माने जाने वाले दाहिने हाथ में बांधी जाने वाले 14 गांठों वाला अनंत का विग्रह ही देवता है।
अन्य परंपराओं से इसके संबंध को समझने के लिये मेरा पुराना पोस्ट भी पढ़ सकते हैं- अनंत की 14 गांठें http://bahuranga.blogspot.in/2013/09/blog-post_7912.html

1 टिप्पणी:

  1. प्रिय रविन्द्रजी,स्नेहाशीष।
    आज का फॉन्ट साइज आँखों को सुकून दिया और विवेच्य विषय मन को।हाँ अनन्त का पुराना पोस्ट नहीं पढ़ पाया। पुनः ढूढ़ने का प्रयास करता हूँ।धन्यवाद।

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