मंगलवार, 16 सितंबर 2014

ये जो विश्वकर्मा जी हैं


इन्हें समझना भी आसान नहीं है। वैसे तो हिंदू होने के नाते किसी भी बात को समझने की कोइ्र अनिवार्यता नहीं है। हमें जब जो मन में आये मानने की सुविधा है लेकिन मनुष्य होने के नाते यदि शास्त्र, परंपरा ब्रह्माझउीय संरचना किसी भी दृष्टि से समझने की कोशिश करेंगे तो अजीबोगरीब उलझनें सामनें आयेंगी। आज प्रसंगानुसार  विश्वकर्मा जी को लेते हैं।
ये भी देवता हैं। लेकिन इनकी दाढ़ी-मूछें हैं, शायद ब्रह्माजी की कॉपी होने के कारण या सूर्यवंशी होने के कारण। मूर्तिशास्त्र के ग्रंथ जो कहें, सूर्य के जो डिस्कनुमा प्रतिमा या चित्र बनते हैं, उसमें दाढ़ी-मूछें होती हैं। ये विश्वकर्मा जी हाथी पर चलते हैं। इनकी महिमा ऐसी कि इन्होंने न केवल खराद मशीन बनाई बल्कि उस पर सूर्य को ही चढ़ा कर काट-छांट कर दिया। नाम है विश्वकर्मा। यदि विश्व की सृष्टि इनके जिम्मे है तो ब्रह्मा जी का काम क्या होगा? ये कहीं ब्रह्मा जी के प्रतिद्वंद्वी तो नहीं हैं। पब्लिक ने इनके नामार्थ को नहीें लिया। इनके कार्यक्षेत्र को मानवीय और यांत्रिक सृष्टि तक ही मुख्य रूप से रखा।
इनकी उत्पत्ति की कथा सूर्य के अन्य संतानों- यम, यमी, धर्मराज, चित्रगुप्त, यमुना, शनिश्चर के साथ आती है। कथा तो कथा है। अपनी उत्पत्ति के पहले ही संतानोत्पत्ति करने वाले सूर्य को ये सुधार सकते हैं।
लाचारी में अपने मन को थोड़ा आधुनिक बना कर सोचना पड़ता है तब लगता है कि ये सूर्य के संतान हों या न हों आखिर इन्हें किस परंपरा में जगह मिलती? इसलिये सूर्य की परंपरा में जगह मिली। यदि यह माना जाय कि इनकी मशीन पर वास्तविक सूर्य नहीं सूर्य की मूर्ति का निर्माण हुआ तो वह मूर्ति मेरे अनुमान से लोहे की नहीं होगी। लोहे या धातु की मूर्ति को ढालना आसान है, खरादना नहीं। पत्थर की शिला को भी खराद मशीन पर चढ़ाना बहुत कठिन लगता है। यह जो बिहार से उड़ीसा तक का क्षेत्र है, वहां लकड़ी की मूर्ति की महिमा है। जगन्नाथ जी के बारे में तो आप जानते ही होंगे। इसी तरह सूर्य की मूर्ति का भी प्रावधान है। इस प्रकार पहली बार इनकी मशीन से सूर्य की लकड़ी की प्रतिमा का निर्माण हुआ, ऐसा अर्थ भी लगाया जा सकता है। ऐसे विश्वकर्मा जी के पास हाथी न हो तो कुछ नहीं हो सकता, न लकड़ी ढोना, न पत्थर हटाना न अन्य कोई काम, जिसमें भारी बल की जरूरत हो। जय विश्वकर्मा जी!

3 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे देश में,हर जाति में,हर समाज में लीगों ने अपने आप को किसी न किसी तथाकथित देवता की कहानियों से जोड़ रखा है. ऐसा वर्चश्व की लड़ाई के कारन चलता रहा है और चलता रहेगा.नै संकर जातियां बनेंगी फिर नया देवता उनका प्रमुख पुरुस हो जाएगा-उदहारण के लिए परशुराम,चित्रगुप्त आदि.आज विश्वकर्मा पूजन है-बढ़ाई, लोहार आदि से निकालकर इसे इंडस्ट्रीज में मान्यता दे दी गई है.आज छूटी भी रहती है पूजन ,भजन , भोजन चलता है.
    हरी अनंत, हरी कथा अनंता, शुभम.

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  2. कुछ रोचक यह भी है कि विश्वकर्मा पूजा वो भी 17 सितम्बर को ही होता है और उत्तर भारत में ही होता है | दक्षिण भारत में भी कल-कारखानों और शस्त्रों कि पूजा होती है लेकिन नवरात्री अष्टमी को | इसे आयुध पूजा कहते हैं | यहाँ विश्वकर्मा का मूर्ति पूजा भी लगभग नहीं होती | अब इनका स्वरूप भी कुछ ब्रह्मा से मिलता है | दाढ़ी कमंडल तक तो दीखता है , हंस सवारी का भी कहीं न कहीं से संकेत मिलता है कि हो ना हो ये ब्रह्मा का ही रूप हैं | एक प्रश्न है- क्या विश्वकर्मा भी एक पद है जिसतरह इंद्र पद कि मान्यता है ?

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  3. एक और रोचक बात भारत में इंजीनियर्स डे मनाया जाता है 15 सितम्बर को विश्वेश्वरैया के जन्मदिन पर | ये सांसारिक इंजिनियर हुए और इनके जन्मदिन के 2 दिन बाद देवताओं के इंजीनियर कि जयंती... है ना रोचक !!!

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