बुधवार, 12 नवंबर 2014

एक था मैत्री क्लब

एक था मैत्री क्लब
मैं इसके कुछ सदस्यों से मिला हूं- स्व. बुधमल शामसुखा जी और श्री रुद्रमान भाई। इन दोनों से मिल कर मुझे लगा कि इस क्लब के लोग सच में लाजवाब होंगे। ये लोग यह समझ रखते थे कि मैत्री के भाव को कुछ लोग भूल गये हैं और अनेक इसमें अन्य विषयों की मिलावट के कारण इसका सुख नहीं ले पाते जबकि यह मनुष्य के विकास और तृप्ति का अनिवार्य साधन है। अतः एक ऐसे मंच/मंडली की व्यवस्था रहनी चाहिये जहां लोग मैत्री जी सकें उसका सुख ले सकें।
मैत्री क्लब के कुछ नियम थे-
1 मैत्री किसी से भी हो सकती है, इसमें लिंग, जाति, धर्म, राष्ट्रीयता की सीमा नहीं हो सकती, बशर्ते दोनो पक्ष चाहे। इस माध्यम से हम दूसरे को समझ सकते हैं, उसे एक हद तक स्वीकार कर सकते हैं और बचे अंतरों के साथ मैत्री पूर्वक जीने का राश्ता भी निकाल सकते हैं।
2 अतः अपनी ओर से मैत्री का प्रस्ताव/विज्ञापन किसी व्यक्ति के सामने या  खुलेआम दोनों प्रकार से रखा जा सकता है। परस्पर सहमति और उसमें खुशी मैत्री का मूल है।
3 इस क्लब का सदस्य किसी दूसरे सदस्य से या खुले आम किसी से कुछ भी मांग सकता है या देने का प्रस्ताव रख सकता है। दूसरे सदस्य को भी वैसे ही हक है कि वह दूसरे के प्रस्ताव को स्वीकार करे या ठुकरा दे। इस क्लब में स्वनिर्णय और परस्पर लेन-देन की भी व्यवस्था है अतः केवल बालिग व्यक्ति ही सदस्य हो सकता है।
4 मैत्री अनमोल है और उस भाव के द्वारा लिया गया या दिया गया सामान, व्यवहार या भाव भी।
5 कम से कम साल में 1 बार सभी सदस्यों को किसी एक स्थान में जुटना चाहिये और मैत्री विकास के बारे में सोचना चाहिये।
6 मैत्री व्यक्ति से आगे बढ़ कर परिवार तक में जाये इसलिये यदि कोई मित्र किसी के घर जाता है तो कम से कम 3 शाम/1 रात रहने भर की यथा संभव व्यवस्था उसे करनी चाहिये। कुछ नियम और भी हो सकते हें जो मुझे याद न हों।
प्रायः ऐसा देखा गया है कि अगर कोई प्रयोग सफल होने लगे तो संसार की हर समस्या का समाधान लोग उसी में खोजने लगते हैं और मूल उद्देश्य के साथ या उसकी जगह अन्यान्य बातें भी जोड़ने लगते हैं। परिणाम होता है कि सब डूब जाता है। मेरी जानकारी में यह मैत्री क्लब भी इस घटना के कारण बिखर गया।
यदि कोई व्यक्ति चाहे तो इस दिशा में प्रयोग कर सकता है। संयोजक बन सकता है। मैं दूसरा सदस्य बनने को तैयार हूं।

1 टिप्पणी:

  1. जहां तक मुझे याद है, एक नियम था किसी पत्र-व्यवहार करने वाले मित्र के पत्र का उत्तर देना। एक अन्य नियम किसी स्थान से आने वाला मित्र अगर पूर्वसूचना देकर रहने के भाड़े के किसी स्थान की व्यवस्था करने के लिए आग्रह करे तो उनके लिए उनकी स्थिति के अनुरूप व्यवस्था कर देना।

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