शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

भारत को समझने की दृष्टियां

मगध-आंध्र संबंध के क्रम में

भारत को समझने की दृष्टियां
वैसे तो अनेक लोग अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से भारत को आधा- अघूरा समझते रहे फिर भी भारत को समझने की प्रमुख 2 दृष्टियां हैं- 1 देशी 2 विदेशी। देशी दृष्टि में इसे पूरी तरह ठीक से समझना पड़ता है तो विदेशी में किसी एक पक्ष का ही अध्ययन मुख्यतः किया जाता है।

देशी दृष्टि - 
इसमें किसी क्षेत्र विशेष की संरचना एवं भारत के अन्य क्षेत्रों के साथ उसके संबंध को समझने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययन में उस क्षेत्र की सांस्कृतिक-राजनैतिक सीमा, चौहद्दी, भाषा, खानपान, सामाजिक मूल्य, इस संसार तथा उसके बाहर के बनावट की मूल समझ एवं विश्वास, आबादी का मूल वर्गीकरण (जातियां) तथा उन पर वर्ण व्यवस्था का प्रभाव, प्रमुख ऋषि, सिद्ध एवं वीर व्यक्ति, सामाजिक संघटन-विघटन की कथाएं, रोजगार-कृषि एवं शिल्प के प्रकार, भूमि के प्रकार उत्तराधिकार एवं परिवार व्यवस्था, मुख्य आचार संहिता अर्थात विधिमान्य/राजमान्य तथा लोकस्वीकृत धर्मशास्त्र/स्मृति ग्रंथ, बाहर से आकर बसे लोग एवं स्थानीय समाज से उनका संबंध, हार-जीत की याादें एंव कथाएं, ऐतिहासिक कृतज्ञता एवं प्रतिबद्धता, मनोरंजन के प्रकार एवं स्वरूप,  नई परिस्थितियों से तालमेल के सिद्धांत/सूत्र, शासन प्रणाली और कर, प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार का स्वरूप।
इस समग्र दृष्टि को देशी दृष्टि कहते हैं। उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान में रख कर उस खे़ के आम लोगों की जीवन शैली तथा उसके लिये आखर संहिता तैयार की जाती थी। उसे स्मृति पंरपरा कहते हैं। समय समय पर समाज के विभिन्न वर्गों के लोग सभा कर इसमें संशोधन भी करते थे और जरूरत पड़ने पर नई किताब भी लिख ली जाती थी। इन नियमों का पालन करने वाले लोगों को स्मार्त कहा जाता है। न मानने पर इन पर राजदंड भी तय होता था। इस शास्त्र के सामाजिक पक्ष वाले शास्त्र को धर्मशास्त्र तथा शासन व्यवस्था एवं कर संग्रह वाले पक्ष को अर्थ शास्त्र कहा जाता था।
विदेशी दृष्टि- 
भारत को ठीक से नहीं समझ पाने वाले विदेशियों की दृष्टि है। इसमें किसी एक विषय या किसी एक पक्ष का अध्ययन अनजान की तरह किया जाता है। भारतीय दृष्टि की जगह अब विदेशी दृष्टि हावी हो गई है। भारतीय विद्वान भी पूरे संदर्भ को साथ रख कर अध्ययन करने की जगह कुछेक नमूनों का संग्रह कर दनजाने व्यक्ति की तरह केवल सतही जानकारी देते हैं तो उसमें जानने का सुख नहीं मिलता। 
मैं देशी दृष्टि से संबंधों को खोजता हूं, उसके लिये पहले अपने देश की समाज व्यवस्था और परंपरा को समझना पड़ता है। मगध तेलंगाना संबंध के लिये मुझे तेलगू भाषा सीखना पड़ेगा और प्राचीन मार्ग से एक बार यात्रा करनी पड़ेगी। जारी क्रमशः..........

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