गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

उदार साधकों के साथ बिताये कुछ क्षण 1

उदार साधकों के साथ बिताये कुछ क्षण 1
भारत में उदार एवं अनुदार दोनों प्रकार के साधक बहुत लंबे समय से हैं। मुझे ग्रथ के वर्णन तथा निजी अनुभव दोनों स्तरों पर ऐसे लोग मिले। पांखंडियों और अनुदारों की चर्चा खूब होती है। उदार शांतिप्रिय होने के कारण चर्चा में नहीं रहते।
मैं केवल अपने जीवन में मिले उदार लोगों के साथ की स्मृतियां रखना चाहता हूं। यह उदारता भी दो प्रकार की होती है, पहली अपने अनुभवों/ज्ञान राशि को बांटने की दूसरी अपनी क्षमता से अर्जित धन, प्रभाव, विद्या से लोगों की मदद करने की। उदार लोग मदद करते हैं। किसी पर जबरन अपना आदर्श या योजना नहीं थोपते। यह दिली बात है।
ऐसे ही एक उदार व्यक्ति थे। स्वर्गीय, ब्रह्मलीन, परलोक सिधारे आदि उपाधियां जिन्हें हास्यास्पद लगती थीं आदरणीय बुधमल शामसुखा जी। श्वेतांबर जैन कुल में पैदा हो कर भी इन्होंने समकालीन सभी साधना धारा के लोगों से संपर्क रखा, सबकी मदद की और नकली गुरु के पाखंड में किसी की जान फंसी तो बगावत कर कमजोर के प़क्ष में खड़े हुए, भले ही वह अपने समाज का सबसे प्रतापी व्यक्ति क्यों न हो। प्रोफेसर के पद की भी परवाह नहीं की।
विश्व में पुनर्जन्म पर आधुनिक दृष्टि से जो लोग खोज करते हैं उनके संगठन के भारत में संयोजक रहे और भारत में मैत्री भावना के विकास के लिये बने संगठन के सदस्य तथा मददगार भी। इस समूह का नियम यह था कि अगर कोई व्यक्ति मैत्री का व्रत लेता है तो उसे ऐसे दूसरे सदस्य को 3 तीन शाम तक अपने घर में एक अतिथि मित्र की तरह रहने की व्यव्स्था करनी चाहिये, जिसकी जैसी घरेलू व्यवस्था हो। मुझे उनसे बहुत वात्सल्य मिला। साधक समाज तथा प्रयोगवादियों से ले कर नौटंकीबाजों की चालाकियों सबके बारे में मुझे समझाया तथा उसके दुष्परिणामों से अवगत कराया। मैं ताउम्र उन्हें कभी नहीं भूल सकता। वे दिल्ली के हौजखाश इन्क्लेव में रहते थे। अब इस दुनिया को छोड़ कर चले गये।

1 टिप्पणी:

  1. श्रीमन पाठक जी , मैं बहुत दिनों से श्री बुधमलजी शमसुखा की लिखित रचनाओं को पढ़ना चाहता हूँ , इंटरनेट पर बहुत प्रयास से भी नहीं ढूंढ पाया। क्या आप मेरी कोई सहायता कर सकते हैं ? आपका आभारी रहूँगा।

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