शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

मेरे गणितीय प्रश्नों के उत्तर 1


बचपन से ही मुझे गणित में कमजोर बताया गया और ऊपर से बेचारे और कमजोर कई शिक्षकों को पढ़ाने के लिये लगा दिया गया। वे सवाल पूछने पर जवाब नहीं देते थे, उसके बदले में मेरी खूब पिटाई होती थी और तुर्रा यह कि तुम हो ही गधे, तुम गणित समझ ही नहीं सकते, बुद्धू कहीं के। इसके बाद भी तमाम विफलताओं के बावजूद मेरे मन के सवाल मर नहीं सके। मेरे वे प्रश्न भीतर ही भीतर जोर लगा कर उत्तर खोजते रहे, सालों साल। सौभाग्य से कुछ प्रश्नों के उत्तर भी मिले, कुछ समय से, कुछ बेसमय। 
एक गैरपेशेवर शिक्षक मिले मामाजी श्री हरिद्वार पाठकजी। उन्होंने मात्र 3 महीनों में 8 वीं तक का सारा गणित सिखा दिया। इससे मेरा मनोबल बढ़ा कि मैं गलत नहीं था, मेरे बेचारे और कमजोर शिक्षक गलत थे। उनसे संपर्क कुछ ही दिनों का रह सका। मेरी सफलता से ये बेचारे और कमजोर शिक्षक इतने भड़के कि अपनी औकात भर पूरी जिंदगी मुझसे दुश्मनी निकाली। मैं भी इन्हें अब जा कर माफ कर सका।
जब बात समझ में आई और वह भी 45 के बाद समझ में आई और धीरे-धीरे आती जा रही है तो गणित का मजा ही अलग लग रहा है। एक उदाहरण प्रस्तुत है- पहले मुझे अनुपात समझ में नही ंआता था कि यह क्या है? 9 तक के अंकों का मतलब तो व्यवहार से समझ में आता था लेकिन न शून्य, न अनुपात। जब अनुपात समझ में आने लगा तो मन नाच उठा कि वाह रे! अनुपात, तेरी महिमा का मैं क्या वर्णन करूं? तेरे बिना तो न जीवन है, न बोध, न कोई व्यवहार। भारतीय संस्कृति में जीने और समझने के लिये तो इसके अनुपात प्रेम को सबसे पहले समझना एवं स्वीकार करना होगा तभी सामान्य व्यवहार से ले कर आध्यात्मिक साधना का शास्त्र समझ में आ सकेगा। वाह रे! अनुपात, तेरी महिमा का मैं क्या वर्णन करूं? किसी भी व्यक्ति, सामग्री या गुण उसकी तुलना एवं मापन की की जरूरत पड़ती ही रहती है। गणित आये या न आये, अनुपात का बोध सबको होता है। जब उसका माप हो जाये तो गणित की भाषा में हो गई उसकी अभिव्यक्ति। अभी अनुपात की महिमा शुरू ही हुई है, कुछ और गुण गान करना है। अतः क्रमशः.......................जारी।

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