शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

मौके की मदद

मौके की मदद

एक बार हमलोग अर्थात् पति-पत्नी एवं दो साल के पुत्र के साथ मोटर साईकिल यात्रा कर रहे थे। उत्तरी एवं मध्य भारत के सुदूर गाँव के जंगलों में समाज सेवा करने वालों से मिलने एवं वादियों में घूमने का निर्णय हुआ।
उसी क्रम में हमलोग एक मित्र के यहाँ कटनी में रूके थे। वह दौर हमारे अर्थसंकट का दौर था। तय किया गया कि कटनी से जबलपुर जाकर शाम तक वापस आया जा सकता है। हमलोग सुबह रवाना हुए। भेड़ा घाट में स्नान हुआ। कुल सौ रूपये में से भोजन वगैरह में 50 रूपये खर्च हो गए। शहर से बाहर निकलते ही मोटर सायकिल पंचर। मरम्मती बाद बढ़े कि फिर पंचर, इस प्रकार तीन बार पंचर। हिम्मत जुटाकर वापस चले।
रास्ते के जंगल में जोर की वर्षा और ओले। किसी तरह बेटे को बीच में छुपाया। हेलमेट और बैग से जान बचाई। तीन-चार कीलोमीटर पर एक बाजार या छोटे कस्बेनुमा आबादी में पहुंचे तो पता चला कि यहां एक लॉज है, जिसमें रात बिताइ जा सकती है। हमने मोटरसायकिल खड़ी की। लॉजवाले से सिगल कमरा मांगा क्योंकि हमारे पास पैसे बहुत कम थे, कुल मात्र 45 रुपये। खैरियत थी कि पेट्रोल था। लॅाजवाले किसी हाल में तैयार नहीं। वह 65 रुपये के डबल बेड पर टड़ा था। हम भींगे हुए कांप रहे थे। कपड़े भी अतिरिक्त नहीं थे। उसी समय दो और सज्जन उसी लॉज में भींगे पहुंचे। उन्हे कुछ आशंका हुई तो पूछा कि आपको डबल बेड लेने से एतराज क्यों है?
हमने अपनी सच्चाई बताईं उन्हें दया आ गई। उन्होंने 45 रुपये दिये। डबल बेड लिया गया। कृतज्ञतापूर्वक पूर्वक उनका पता पूछा ताकि उनके रुपयों को मनिआर्डर से वापस किया जा सके। हमें पता नहीं मिला। हाँ, एक सुझाव मिला कि अगर कोई आपको भी मुसीबत में मिले तो यह राशि उसे दे कर समझियेगा कि कर्ज की वापसी हो गई।

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