खड्ड से आप परिचित हैं। गड्ढे प्रायः हर जगह उपलब्ध होते हैं। ‘‘खुड्डाक’’ नया शब्द होगा, आम लोगों के लिये। यह आयुर्वेद का तकनीकी शब्द है। इसका मतलब है- आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा की अनिवार्य शर्ते। ये चार हैं। रोगी का अनुशासित होना वगैरह, तीन बातें तो ठीक हैं परंतु चौथी बात बहुत खतरनाक है। रोगी का ‘‘आढ्य’’ अर्थात धनी होना। मतलब साफ है कि इस मान्यता के आते ही आयुर्वेद लोकोपकारी नहीं रह जाता।
पुराण वालों को जितना कोसा जाय लेकिन एक बात साफ है कि पुराण वालों की नजर आम आदमी पर है कि वह कैसे जुड़े? पुराण वालों ने आयुर्वेद के ज्ञान को ब्रांड मुक्त करने का प्रयास किया। उसे लोक जीवन में स्थापित करने के जतन किये। उसे उपासना से जोड़ा, सस्ते सरल उपाय बताये। चिकित्सा के लिये इतनी अधिक सामग्री पुराणों में डाली कि वैद्यों का खुड्डाक फेल।
उसके बाद भी पुराणों को सस्ते कल्प चिकित्सा के उपायों से भर दिया। सहज है कि यह काम उसी जमात एवं बिरादरी के उदार लोगों ने किया, जिस बिरादरी/जमात के लोगों ने संकीर्ण स्वार्थवश रोगी का ‘‘आढ्य’’ अर्थात धनी होने की शर्त डाली थी। इसका ही एक उदाहरण है- ऋषि पंचमी व्रत। यह भी चौमासे के भीतर भादों माह में पूरा हो गया, मैं कुछ लिखना भूल गया। इसे ‘ऋषिपंचमी व्रत कल्प चिकित्सा’ कहना समझने के लिये अधिक सुविधाजनक होगा। मौका पाकर लिखूंगा। अन्य जानकार लोग भी प्रकाश डालें तो अच्छा हो।
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