गुरुवार, 12 सितंबर 2013

रहस्य, चमत्कार एवं अंध विश्वास

विमोहन 9

रहस्य, चमत्कार एवं अंध विश्वास

रहस्य चमत्कार एवं अंधविश्वास, ये तीनों शब्द अति प्रचलित एवं विवादास्पद रहे हैं। इन शब्दों के प्रति आकर्षण तथा विकर्षण से अधिक इनके उदाहरणों एवं अर्थों के प्रति हजारों साल से खींचतान चल रही है।
भारत के संदर्भ में इस विषय को समझना जरूरी है तभी सही दिशा का निर्धारण हो सकेगा। संसार में हर बात तब तक रहस्य है, जब तक हम जानते नहीं। हमारा शरीर एवं मन विभिन्न भौतिक साधनों, रंग, ध्वनि, सुर, स्वरों के आरोह-अवरोह से प्रभावित होता है। ऐसी हर सामग्री में एक विशेष प्रकार की शक्ति है। इनकी कार्यप्रणाली का शास्त्रों में विस्तृत विवरण उपलब्ध है। इन शक्त्तियों का आप जिस किसी शक्ति या देवी देवता के नाम से पुकारें, उससे केवल नाम का अंतर होगा।

इनकी कार्यप्रणाली न जानने पर सबकुछ चमत्कार है, और जानने पर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कहाँ केवल मानसिक स्तर पर घटना घटित हो रही है और कहाँ केवल भौतिक या फिर मिश्रित रूप में।
सामान्य प्रकाश से शांति, गहरे लाल रंग से जोश एवं गुस्सा काले रंग से गहन शांति या भय उत्पन्न होता है। बिना मिर्च-मसाले के भोजन से मन को एकाग्र करने में सुविधा होती है। इससे आगे बढ़ने पर जामितीय आकृतियों का अर्थ एवं अवचेतन मन से उनके रिश्ते एवं कार्य प्रणाली को जानना पड़ता है। कोई व्यक्ति किसी देवी-देवता को माने या न माने फिर भी ये प्राकृतिक शक्तियाँ सही स्थान में संयोजित होने पर सामान्य भौतिक घटनाओं की तरह काम करती ही हैं।

दो प्रकार की सूचनाओं ने पूरे समाज को भ्रम में डाल दिया है और उनसे बचना जरूरी है। पहली प्रकार की सूचनाएँ हैं - फलसु्रति संबंधी अर्थात् ऐसा करने से इतने प्रकार के लाभ होते हैं। जैसे - अमुक मंदिर में जाने से सारी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं - ऐसा संभव ही नहीं है। मन तो परस्पर विरोधी इच्छाओं में फँसा रहता है। इस मंत्र के जपने से राजा या स्त्री मुग्ध हो जाती है।

दूसरे प्रकार की सूचनाएँ - वे हैं जो द्वयर्थक भाषा में इस प्रकार लिखी गई हैं, जिससे उसकी कोई नकल न कर सके और विद्या के असली जानकारों की मर्जी और उन्हें उसके लिये भुगतान किये बगैर कोई लाभ न उठा सके। यह बात भी लिखी रहती है कि धूर्त, कृतघ्न एवं भिन्न परंपरा के लोग इन पुस्तकों को पढ़कर दिग्भ्रमित, पागल या बीमार हो कर बरबाद हो जायें।
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एक दृष्टि से ऐसा साहित्य सृजन बहुत ही अमानवीय लगता है। दूसरी दृष्टि से विचार करें तो बिना पूरी और सही जानकारी प्राप्त किये, किसी विद्या के विद्याधरों को दाक्षिणा दिये बगैर उसका लाभ उठाने की कृतघ्नता क्या उचितहै? भारतीय कॉपी राइट का यह संरक्षण वाला जवाबी तरीका बहुत सुरक्षित और दुश्मनों के लिये खतरनाक है।

आज भी इसी चालाकी में अनेक लोगों का अनिष्ट हो रहा है। छोटी-छोटी अप्रामाणिक पुस्तक खरीद कर साँप बिच्छु का जहर उतारने, यक्षिणी सिद्ध कर सोने की मुहर पाने की जुगत में लोग बरबाद होते हैं।
इस युग के भी कई बड़े-बड़े विद्वानों ने समाज को गुमराह करने के पूरे उपाय कर दिये है। उपन्यास शैली में तांत्रिक कथाएँ लिखी हैं, लोग उन्हें अक्षरशः सच मानते हैं।

उपर्युक्त की जगह पतंजलि के योगसूत्र, विज्ञान भैरवतंत्र की विधियाँ, ध्वनियों के स्वरूप संबंधी पाणिनीय शिक्षा, बौद्ध तंत्रों के लिये महायान सूत्र, उनके पटविधान, मंत्र साधना संबंधी अध्यायों को ठीक से पढ़ने-
समझने पर ये भ्रांतियाँ नहीं होतीं।

किसी बात को जाने-समझे बिना ही उसके पक्ष या विपक्ष में तत्पर हो जाना अंधविश्वास है। अयोध्या में रामजन्म हुआ, यह कथा सिद्ध प्रसंग है। किसी स्थान विशेष पर ही उनका जन्म हुआ या नहीं यह निश्चय करना असंभव की तरह कठिन है। घट-घटवासी राम, सबके मन में रमण करने वाले राम के सूक्ष्म स्वरूप या चेतन आत्मा स्वरूप को राम नाम के किसी व्यक्ति विशेष में केन्द्रित या सीमित करना अंधविश्वास है। रावण नामक ब्राह्मण की हत्या करने वाले दशरथ पुत्र राम सभी ब्राह्ममणें को भी मान्य नही हैं, मुसलमान या ईशाई की बात क्या करें? ऐसे ब्राह्मणों की बहुत बड़ी संख्या अयोध्या के आसपास है। यह संख्या लाखों करोड़ों में जाएगी। नई पीढ़ी इस प्रसंग को भूल रही है। इसी में शांति है।

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