मंगलवार, 24 सितंबर 2013

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 मित्रो,
मैं बौराया नहीं हंू, यह चौमासे का असर है। चौमासे में विष्णु भगवान भले ही 4 महीनों के लिये सो जायें उनके लोग थोड़े ही सो जाते हैं। वे जम कर जश्न भी मनाते हैं और उत्पात भी करते हैं। इसलिये चौमासे के भीतर अनेक व्रत उत्सव भी होते हैं। इसीलिये मजबूरी में मुझे भी ताबड़तोड़ पोस्टिंग करनी पड़ रही है।
विष्णु भगवान के सो जाने पर फुरसत पा कर उनके प्रिय वाहक गरुड महाराज क्या करें? तो वे इस समय विष्णु भगवान के नाम पर अपना साम्राज्य बढ़ाने में लग जाते हैं। यह जो पूरा पितृपक्ष और वैष्णव परंपरा का श्राद्ध है, उसके प्रवर्तक गरुड हैं। उनके ही नाम पर गरुड पुराण है। आज जो स्वर्ग-नरक की अवधारणा प्रचलित है, उसका सर्वाधिक विस्तृत विवरण गरुड पुराण में ही मिलता है।
उनके उत्पात और परम करुणामय बोधिसत्त्व जीमूतवाहन के आत्मोत्सर्ग तथा उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का उत्सव भी तो आ गया। जीउतिया का पूरा ऐतिहासिक संदर्भ एवं पूरी कथा भी आ रही है। टाइप हो कर तैयार है। मेरे दो मित्र सर्वश्री राजबल्लभ जी और विनय रंजन जी ने तो भूइयां जाति पर बहुत काम किया है। वे अगर कुछ चित्र डाल सकें तो बहुत अच्छा लगेगा।

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