सम्मोहन/विमोहन

मैं सम्मोहन की दवा नहीं बेचता

मानसिक उलझन, थकान, तनाव जीवन के सहज घटक हैं। इनका सहज समाधान प्रयास, विश्राम, सुख एवं दुख के भोग तथा नींद में है। हर समस्या का समाधान केवल नींद में नहीं है। संभावनाओं की तलाश, कल्पना और स्वप्न, अलग है। अत्यधिक पीड़ा में कुछ देर के लिये दिल को बहलाने को बहानों की जरूरत किसी को भले हो जाय, वह तात्कालिक रूप से दया का पात्र हो सकता है। असली समाधान सच्चाई को स्वीकार करने में ही है।

धर्म में आलस्य, प्रमाद अर्थात लापरवाही, अज्ञान एवं उससे बढ़कर निजी मान्यताओं को तोड़ने के उपाय हैं। यह नींद तोड़ने वाली बात हुई। इसके समानांतर ऐसे भी अनेक उपाय हैं जिनके द्वारा आप कुछ समय के लिये अपनी पसंद की काल्पनिक दुनिया में जा सकते हैं। किसी धारणा को अपनी पहचान बना कर पूरे संसार के खिलाफ पागलपन की हद तक जा सकते हैं। सम्मोहन का शिकार हो कर मानव बम भी बन सकते हैं। मैं इसके विरुद्ध ही काम करता हूं।

एक दिन हम पति-पत्नी का झगड़ा हुआ। सुलह के बाद श्रीमती जी ने कहा कि आपको जब समाज व्यवस्था, बाजार, विज्ञापन, राजनीति, गाना, फिल्म सभी जगहों पर सम्मोहन नजर आता है तो आप मुझे ही सम्मोहित क्यों नहीं कर लेते? इससे मेरे आपके बीच कोई विवाद नहीं होगा। पत्नी को सम्मोहित करने में बुराई क्या है? मैं तो स्वयं सहमति दे रही हूं। मैं ने कहा बुराई और नैतिकता की बात फिलहाल छोडि़ये, असली खतरा यह है कि आज मेरे सम्मोहन में, कल दूसरे के। इस खतरे को उठाने की हिम्मत 50 पार वालों को भला हो ही कैसे सकती है? आप अपना काम कीजिये मैं अपना । इस अभ्यास में जितना सम्मोहन टूट जाय उसी से काम चला लिया जायेगा।


सम्मोहन/विमोहन

इस संसार में मुझसे मित्रता करने वाले लोगों की संख्या शत्रुता करने वालों से अधिक है। कुछेक लोगों को छोड़ मुझसे दुश्मनी कम ही लोगों ने की। हां, ईर्ष्या करने वाले भी काफी हैं। मेरी लोकप्रियता बहुत कम है क्योंकि मुझे बहुत कम लोग पंसद करते हैं। मैं सपनों का सौदागर जो नहीं हूं। इस दुनिया में ठगों की कमी इसलिये नहीं है क्योंकि लालची लोगों की संख्या अधिक है। तुरत धनी बनने की लालसा का क्या कोई दोष नहीं है? इसलिये मेरा दायित्व बनता है कि जिन सज्जन लोगों ने सजगता, होश एवं कृतज्ञता की मुझे शिक्षा दी उनके सम्मान में जो कोई भी किसी सम्मोहन से बाहर निकलना चाहें मैं उन्हें निःशुल्क मदद करूं।

एक सामान्य सी बात आपके समक्ष रख रहा हूं। अगर आप चाहते हों कि आप सम्मोहित हो जायें तो अपने शिर को तेजी से आगे-पीछे घुमायें और अगर तुरत सम्मोहित होना चाहते हों तो गोल गोल घुमायें। विश्वास न हो तो किसी भी मदरसे का दृश्य देख लें कि वहां किस तरह कुरान पढ़ा जाता है। चाहे संस्कृत हो या फारसी रेजिमेंटलाइजेशन का यह पहला पाठ है। हम लोगों को बचपन में ही डांट पडती थी कि होश में रहो, झूमना बैल नहीं बनो।

धार्मिक दृष्टि से कट्टर बनने एवं रट्टू तोता बनने से बचाने के लिये अपनी संतान को झूम-झूम कर कविता, पहाड़ा, श्लोक आदि रटने से रोकें। लय बद्धता घ्वनि में हो, शरीर में नहीं। मेरु दंड सीधा रखने से बेहतर होश में बात आसानी से समझ में आती है। बच्चे की तार्किक प्रतिभा निखरती है। आगे चल कर वह आसानी से योग, तंत्र, संगीत, चित्रकला आदि वगैरह भी सीख सकता है। मेरुदंड सीधा रखे बगैर कोई भी असली विद्या नहीं सीखी जाती।


विमोहन 2
गीता का ज्ञान या फिल्मी गान
श्री कृष्ण के जन्मदिन पर एक बात याद आई कि कृष्ण का एक नाम ‘‘रण छोड़’’ भी है। मुझे लगता है कि अगर अपनी बातों की पैरोडी बनाने वाले भक्तों से दुबारा कृष्ण का सामना हो जाता तो भगवान होने के बल पर शायद भारत के इतिहास से अपना एवं अपने विचारों को सदा के लिये वापस ले लेते। एक अति प्रचलित नमूना पेश है।
‘‘कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर रे इंसान। जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।’’ यह वाक्य गीता के श्लोक- ‘‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.........’’ से अनेक गुना लोक प्रिय हो गया है। क्योंकि यह फिल्मी वाक्य है। किसी के मन में शायद यह प्रश्न ही नहीं पैदा हुआ कि कृष्ण जैसा कर्मवादी गीता जैसी पुस्तक में क्या ऐसा कह भी सकता है? जो संस्कृत नहीं जानते उनकी मजबूरी यह कि मूल अर्थ नहीं समझते, जो जानते हैं उनकी मजबूरी यह कि सच कैसे बोलें लोकप्रियता पर संकट होगा।
इसलिये मैं आज व्याख्या नहीं शब्दशः अनुवाद रख रहा हूं, निर्णय आपका। पूरा श्लोक है-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते संगोस्त्वकर्मणि।
कर्म(एक वचन) में ही तुम्हारा अधिकार है, फलों (बहुवचन) में नहीं, कर्मफल का हेतु(एक वचन एक मात्र हेतु) न बनो, अकर्म में भी तुम न लग जाओ।
इस बात को विश्लेषित कर इसी पुस्तक में कृष्ण या व्यास आप जो मानें स्पष्ट करते हैं-
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधं विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पुचमम्।
शरीरवांग्मनोभिर्यः कर्म प्रारभते नरः न्याय्यं वा विपरीतं वा पंचैते तस्य हेतवः।।
तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः।
1 आधार, 2 कर्ता, 3 विभिन्न प्रकार के करण, 4 विभिन्न प्रकार की विविध चेष्टाएं और 5 दैव। मनुष्य न्यायोचित या उससे विपरीत किसी भी प्रकार का जो भी कर्म ठीक से आरंभ करता है, उसमें ये 5 हेतु होते हैं। वहां पर ऐसी स्थिति होने पर भी जो केवल स्वयं कर्ता को ही देखता है, वह अपरिष्कृत बुद्धिवाला दुर्मति व्यक्ति देखते हुए भी (वास्तविकता को) नहीं देखता।
सीधी बात - जब 5 कारक हैं तो अकेला कर्ता रूपी 1 कारक को ही फल पर कैसे अधिकार होगा? बाकि संसाधनों एवं परिस्थितियों का क्या कार्य संपन्न होने में कोई भूमिका नहीं? पहले श्लोक की चेतावनी- जब 5 कारक हैं अकेला कर्ता को ही फल का एक मात्र कारक न मानो, न ही उदास हो कर कर्म से विरत हो जाओ। इस में फल देने वाले भगवान तो हैं ही नहीं। सफलता के लिये संसाधन और प्रयास भी जरूरी है ही। अगर सामर्थ्य या परिस्थिति अनुकूल नहीं है तो अनुकूल करने का प्रयास होना चाहिये न कि मुंह लटका कर उदासी में डूबने से समाधान होगा?

विमोहन 3
ईर्ष्या का असर जबर्दश्त होता है। 

कई काम जो जरूरी न भी हों उन्हें मनुष्य केवल ईर्ष्या के कारण करता है। दुश्मनी खुलेआम भी हो सकती है, पीछे से भी, लेकिन ईर्ष्या जनित कार्य तो प्रायः गुप्त होते हैं। मेरी एक आंख भी फूटे तो चलेगा, दूसरे की दोनों आंखें फूट जानी चाहिये।
आज कल मनोविज्ञान का एक भाग इंडस्ट्रियल सायक्लोजी के नाम से जाना जाता है। वहां ऐसे विषयों को समझा जाता है और विज्ञापन का व्यापार करने वाले इसका उपयोग करते हैं। एक उदाहरण है ओनिडा टी.वी. का विज्ञापन। आप ठीक से स्मरण करें तो पूरा विज्ञापन आपकी नकारात्मक भावनाओं के इस्तेमाल पर आधारित है। शायद घरेलू महिलाओं को ईर्ष्या अधिक सताती होगी इसलिये पूरा प्रस्ताव है कि आपके पड़ोसी इतने जलें कि आपकी टी.वी. पर पत्थर तक फेंकने को तैयार हो जायें। ऐसा टी.वी. जरूर खरीदें जिससे दूसरे को जलाने का सुख मिले।
नकारात्मक भावों के सदुपयोग दुरुपयोग के अनेक उदाहरण मिलेंगे। आपकी बाइक इतनी अच्छी कि नो प्राब्लम, कोई भी जिज्ञासा..............नो प्राब्लम, पूरा इत्मीनान..........नो प्राब्लम ..............गाड़ी उड़ा कर कोई ले जाय नो प्राब्लम। इसी बहाने आपने मेरा यह पोस्ट तो पढ़ा, नो प्राब्लम।

विमोहन 4
समान नागरिक संहिता की जरूरत किसे?
कभी कभी ऐसा लग सकता है कि कोई राजनैतिक समूह सच में बड़ा ही मौलिक और नैतिक मुद्दा उठा रहा है। मजेदार तो यह है कि वह जो मुद्दा उठाता है उसके बारे में शायद उसे भी नहीं पता होता कि वह उसके पक्ष में जायेगा या विपक्ष में।
इसी तरह कुछ हिंदूवादी दरसल एक संगठन विशेष से प्रभावित लोग भारत में सबके लिये समान नागरिक संहिता की मांग करते हैं। इस मांग में सामान्य अनुयायी यह समझ बैठते हैं कि समान का मतलब एक ही नागरिक संहिता है, जैसे एक दंड संहिता है। मुस्लिम या ईशाई समाज का पारिवारिक आर्थिक व्यवहार एवं उनके यहां स्वीकृत परंपरा या शरीयत जैसे धर्मशास्त्ऱीय ग्रंथ जिनके आधार पर उनकी जो भी नागरिक संहिता बनी है, उसमें उतनी विविधता नहीं है जितनी हिंदू समाज के सामाजिक आचार में।
हिंदू उत्तराधिकार, हिंदू विवाह कानून आ जाने के बाद भी यह न समझें कि उलझनें समाप्त हो गईं। आज भी बेटियां आम तौर पर उत्तर भारत में अपने मैके में हक नहीं लेतीं और हर बेटी का बाप तिलक दहेज से ले कर पुश्त दरपुश्त बेटे वालों को देने की भावना रखता है। मुसलमान को चार शादियां करने का हक है, जैसे पहले हिंदुओं को अनंत शादियां करने का हक था।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदू माने जाने वाले समाज में ही अभी भी विवाह के अनेक रूप प्रचलित हैं। संपत्ति में उत्तराधिकार संतान पर आधारित होता है और संतान विवाह पर। जब विवाह और दांपत्य भिन्न भिन्न प्रकार के हों, जैसे- अनेक पति, अनेक पत्नी, कुल विवाह, मातृ सत्तात्मक विवाह, पत्नी के घर जा कर रहने की परंपरा आदि और इसी तरह सगोत्रता, सपिंडता के प्रचलित पैमाने ही अलग हों तो संतान का निर्धारण, उत्तराधिकार एवं परिवार के सदस्यों के अधिकार एवं कर्तब्य भी अलग अलग हो ही जायेंगे। इन्हीं बातों के आधार पर तो नागरिक संहिता बनती है।
दरसल यह समस्या सबसे अधिक न्ययालय को झेलनी पड़ती है जब भारत जैसे विविधता पूर्ण देश में दो परंपरा के लोग विवाह कर बच्चा पैदा करते हैं और उनके बीच संपत्ति गुजारा भत्ता, विवाह विच्छेद आदि विवादों का निर्धारण करना होता है। हिमाचल के लाहौल - स्पीति में जमीन बहुत कम है, बंटवारे की गुजाइश नहीं इसलिये उत्तर भारत के मैदानी भाग से बिलकुल अलग ही वहां की व्यवस्था है। यही हालात आसाम में खाशी लोगों के साथ है। वहां मातृसत्ता है। औरतें मैदानी भागों से आकर बसने वालों मर्दों के साथ विवाह करना चाहती हैं। मर्दो ने सुप्रिम कोर्ट में मुकदमा किया कि औरतों को जाति से बाहर विवाह करने से रोका जाय और मूल प्रजाति संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षण दिया जाय। कर्नाटक का तारवाड़ विवाह शैली दरसल कुल विवाह है, व्यक्ति का नहीं।
अब आप स्वयं सोचिये कि समान नागरिक संहिता किसके खिलाफ जायेगी या यह मान लिया जाय कि मराठा लोग या मध्य भारत के लोग जो भी सोच लें उसी के अनुसार पूरे भारत को चलना ही होगा। संतरंगे भारत को नष्ट हो कर किसी न किसी एक ही रंग में रंगना ही होगा। फिर माओवादियों की निंदा क्यों? उनका रंग थोड़ा ही तो अधिक लाल है। मुझे पता है कि इस बहुरंगी भारत को सामाजिक स्तर पर पहले से ही जोड़ने की व्यवस्था है। राष्ट्रीय एकता उसी से है, दावा करने से नहीं। कानून के विशेषज्ञ इस पर अपनी राय जरूर दें।


विमोहन/ Dehypnotizing 7
A real book, which could not be believed, but absolutely real. It is my personal experience with the book. I have tried it many times and always found correct and true.
I was suffering from a hypertension and hyper acidity with uncontrolled apatite in my student life. Usually I needed food as for 6 people every day or very high protein diet. I know my guilt, it occurred due to some experiments in the field of meditation and other disciplines. High secretion was a psychosomatic disorder and it was non curable with drugs. Whenever I tried any method to resolve the issue, it worsened. Finding out the cause was not enough, at this stage the book helped me. I am grateful to the great author and my local social guardian Mr. S.P. Mittal a senior freedom fighter and social scientist. 
I had changed my own personality with the help of this book. Strange about this is that the author is neither a psychologist nor psychotherapist, he is a Plastic surgeon of Italy. Here “is”  denotes my wishes for him , actually he may not be alive.
In 1080 when the computer was not available for common people in India I have a theoretical idea about basic features of computer human mind as well. The author has well explained these items like a handling manual of any electronic instrument. We are not slave of mind rather we have a mind and we could take its services, operate it and we can change the settings with our effort as per our need.
Sleep is more useful for learning. Of course I learnt motor cycle driving in sleep, you may not believe. If I tell more it will reduce your interest.
One friend has told that there is a link to access the book from net. This amazing book is “Psycho Cybernetics” by Dr. Maxwell Maltz, 29th reprint was published in 1979 by Pocket Books, New York.



विमोहन/ Dehypnotizing 6
Be aware of twilit sentences of TANTRA books. They have been coded and there is an open declaration that let this book destroy our rival practitioner who is just like enemy and them too who are not grateful to the tradition of tantric practices of the particular school which that book belongs to.
I think Aashaaraam is also suffering from a mental problem. He is hypnotized by a twilit statement of Tantra- in Sanskrit –
‘NITYAM BAALAA SEBYAMAANAA NITYAM WAI BARDHATE BALAM’. The foolish and dangerous meaning will be ‘if girls are used regularly, the power increases always.’
Actual and fortunate meaning will be if the medicinal plant Balaa is used regularly it improves the strength of the personality.

विमोहन/ Dehypnotizing 5
World is suffering from various type of hypnosis. We all suffer any time. The agony is that sufferer does not recognize that he/she is sufferer. Till it becomes clear to the sufferer the time has gone away.
Once I had been little affected indirectly by Aashaaraam “Bhonpoo”. As I have interest in behavioral psychotherapy with Indian methods, symptoms of psychological illness are more obvious to me than a lay man. Once a lady relative of mine got hypnotized by so called SATSANG of Aashaaraam. Her entire personality was changed. A naughty and pleasant personality was doing Jap of Bhagawan and Guru without any break. Her family members were also very pleased on this. As a relative I warned them against such sudden change but they blamed me too.
Only after 2 months the lady has to be taken to the Psychotherapist and still she is not fully normal, suffering from long affects of seduction. Her husband also became depressed latter on.

Why it happened so? Actually they were in search of CHAMTKAAR to solve their family burden. But burden increased. A heavily loaded, burdened personality is afraid of his/her failure and wants to make other responsible for his/her failure and decision whether right or wrong. Such personalities are actually always ready to be seduced and cheated. Friends accept the reality whatsoever existing in your life. As a human we do more times right but sometimes wrong too. It is normal. Try to rectify if possible otherwise accept it this attitude will save you from such type of BAABAAS.

1 टिप्पणी:

  1. क्या आप सम्मोहन विद्या के जानकार उपासक है सम्मोहन से अपने अंदर की बुराइयों को दूर किया जा सकता है सम्मोहन विशेसज्ञ इसमे मदद करते है

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