शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

गया श्राद्ध : प्रायः पूछे जानेवाले प्रश्न और उत्तर

प्रायः पूछे जानेवाले प्रश्न एवं उत्तर

1. पिंडदान में कितना समय लगता है ?
उत्तर- पूरी प्रक्रिया में लगभग 21 दिन, बाकी आपकी शक्ति एवं श्रद्धा तथा समय।
(विशेष जानकारी के लिए पढ़े ...............)

2. कितना खर्च खर्च आता है ?

उत्तर- खर्च की निश्चित सीमा नहीं है। आप अपने लिए क्या सुविधाएं चाहते हैं और किस स्तर के आचार्य से श्राद्ध सम्पन्न कराना चाहते हैं तथा कितने दिनों का, इसी आधार पर खर्च का अनुमान किया जा सकता है।
दान की कोई सीमा नहीं है। गरीब लोग झंुड में सामूहिक पिंडदान बहुत कम खर्च में कर लेते हैं और अमीर लोग अपने लिए एक अकेला आचार्य भी रखते हैं तो उनका खर्च अधिक होता है। इसका कोई निश्चित मानक नहीं है।
मध्यम स्तर पर तीन दिनों के श्राद्ध में , जिसमें आचार्य एकल हो, 5 से 10 हजार तक का खर्च आता है। यह कम या अधिक भी हो सकता है।

3. रहने की व्यवस्था क्या है ?
उत्तर- पंडों के घर, सरकारी कैम्प, धर्मशालाएँ, होटल, निजी घरों के कमरे, जो स्थानीय लोग किराये पर देते हैं। भारत सेवाश्रम संघ की समानान्तर व्यवस्था है। कम से कम 2 महीने पहले बुक करायंे। बोधगया की दूरी 15 किलोमीटर है।

4. क्या पंडे बहुत परेशान करते हैं ?
उत्तर- अब पहले वाली बात नहीं है जब हाथ बाँधकर धर्मसंकट में डालते थे। सभी पंडे परेशान नहीं करते। आज कल तो अनेक लोग पहले से ही सब कुछ तय कर लेते हैं। जब गलत पंडे से सम्पर्क हो जाय तब फँस जा सकते हैं। पंडों के बीच जजमान एवं इलाकों का बँटवारा रहता है। दूसरों का जजमान जब कोई पंडा अपने पास ले जाता है तब झगड़ा होता है, जिसमें जजमान भी फँस जाता है।
अतः सही पंडे की पहचान कर उसके पास जाना चाहिए। इसके लिए पंडों का अपना संगठन गयावाल तीर्थवृत्ति सुधारिणी सभा एवं चौदह सइयाँ कमिटि, पुलिस या भारत सेवाश्रम संघ से सीधा सम्पर्क करना चाहिए।
आने के पहले ही अपने परिवार के पुराने पंडे की जानकारी प्राप्त कर लें। जानकारी न होने पर सरकारी बेबसाइट या मित्र परिवार आदि से मदद लें। दुनिया बदली, तो पंडे भी बदले। जमींदारी उन्मूलन के बाद पंडों का केवल धार्मिक महत्त्व ही बचा है। जमींदारी, रंगदारी को कानूनी या सामाजिक संरक्षण नहीं है। तीर्थ व्यवस्था में भी अनेक लोग लग गये हैं। प्रशासन, धार्मिक संस्थाएँ, ट्रस्ट चलाने वाले सेठ, होटल मालिक सबकी सालाना आमदनी का एक बड़ा भाग इस धार्मिक अवसर पर प्राप्त आय है। सभी अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में लगे रहते हैं। गयावाल पंडों से डरने की जरूरत नहीं है न ही उनके परम्परागत अधिकारों को चुनौती देने की।
धामी, श्रोत्रिय और मग तो आसानी से संतुष्ट होने वाले हैं। ये इतने संगठित भी नहीं है कि किसी तीर्थ यात्री से लड़ेंगे न ही इनके अधिकार क्षेत्र की सभी वेदियों पर सभी लोग जाते हैं ?

5. पंडों की प्रताड़ना से बचाने में क्या आप मदद करेंगे ?
उत्तर- अवश्य, अगर आप ने स्वयं जान-बूझकर गलत पंडों का चुनाव नहीं किया हो। पंडों का अधिकार क्षेत्र पारंपरिक है। कम या अधिक दक्षिणा-दान के विवाद में मदद हो सकती है, परंपरागत अधिकार के मामले में नहीं।

6. कौन पिंडदान कर सकता है ?
उत्तर- वैसे सभी व्यक्ति जो पिंडदान में आस्था रखते हैं और जिनके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी हो।

7. क्या आप पिंडदान करा देंगे ?
उत्तर- मैं पिंडदान कराने का काम नहीं करता। केवल परामर्श दे सकता हूँ। मेरी समझ के अनुसार श्राद्ध के लिए 30 दिन के समय एवं श्रद्धा की आवश्यकता है। जब मैं इतना समय नहीं निकाल सकता तो श्राद्ध क्या कराऊँगा ?

8. क्या पिंडदान कराने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलेगी ?
उत्तर- यह विश्वास का मामला है। बिना पिंडदान भी प्रेतबाधा से मुक्ति मिल सकती है। प्रेतबाधा के लिए दो बातों को व्यक्ति के अंतःकरण/चित्त में स्थापित करना होता है, चाहे वह जिस विधि से हो- भय एवं ग्लानि से मुक्ति, देश एवं काल की नैसर्गिक स्मृति (जो जन्म से रहती है) में आई त्रुटि की मरम्मत। ये किसी भी विधि से सम्पन्न हों, तभी प्रेतबाधा से मुक्ति मिल सकती है।

9. कैसे पता चलेगा कि पिंडदान सफल हुआ या नहीं ?

उत्तर- इसकी कोई पक्की जाँच नहीं है। आपका अपना विश्वास एवं संतोष ही असली है।

10. मच्छरों का क्या हाल है ?
उत्तर- हाल पुराना है। अब गया क्या, अनेक शहरों मंे फैल गए हैं। क्या उनकी मुक्ति के लिए भी आप श्राद्ध करना चाहेंगे ?

11. आप लोग गंदगी हटाने के बारे में कुछ करते क्यों नहीं ?
उत्तर- गंदगी की परिभाषाएँ एवं पहचान अलग-अलग हैं। हमलोग अपने बल पर प्रयास करते हैं। गया तीर्थ हैै। अगर सारे हिन्दुस्तानी लोग गंदगी फैला सकते हैं तो सफाई में भी तो उन्हें योगदान करना चाहिए आपका क्या ख्याल है ? शामिल होइएगा ?

12. कहाँ ठहरना उचित होगा ?
उत्तर- पहले आप अपनी जरूरत एवं आर्थिक योजना पर विचार करें -
- आवासीय कैंपों में राशि नहीं लगती।
- धर्मशाला में 25 से 100 रूपये में काम चल जाता है।
- भारत सेवाश्रम संघ श्रद्धानुसार राशि स्वीकार करता है।
- पंडे अपने घरों में या अतिथिशालाओं में व्यवस्था करते हैं। उनसे आप बात कर सकते हैं। धोखा भी हो सकता है। स्वतंत्र कमरे की आशा न करें। प्रायः भीड़ होने पर संयुक्त कमरा ही मिलेगा। पंडे लोग आपकी माली हालत का स्वयं अनुमान लगाकर व्यवहार करते हैं। आप जितनी सुविधा चाहंेगे उतनी संपन्नता का आप स्वयं दावा करते हैं तो दान-पुण्य उसी अनुपात से आपको करना चाहिए। बेहतर यही है कि समय पूर्व साफ-सुथरी चर्चा कर कमरा बुक करा लें।

13. घर से क्या7क्या सामान लाना होगा ?
उत्तर- पहनने के कपड़े - रुकने की अवधि के अनुसार दवा वगैरह जो जरूरी हो और आपके लिए जो भी बेहद जरूरी हो। बाकी का सारा सामान बाजार में मिलता है। परम्परानुसार घर से चावल, तिल, जौ का चूर्ण/सतू ला सकते हैं। शेष सामग्री यहाँ मिल जाती है। जेवरात पहनकर मेले में न आएँ तो ही अच्छा है।

14. मुंडन कराना क्या जरूरी है? अगर हाँ, तो कब और कहाँं? मुंडन से बचने का क्या कोई उपाय है?
उत्तर- मुंडन की अलग-अलग क्षेत्रीय परम्पराएँ हैं। अनेक लोग, घर से ही मुंडन करा कर आते हैं। कुछ यहाँ भी कराते हैं। कुछ नहीं भी कराते हैं। इसकी अनिवार्यता नहीं है। वस्तुतः मुंडन निषिद्ध है।

15. योग्य आचार्य कैसे मिलेंगे ?
उत्तर- अगर आप स्वयं संस्कृत भाषा या कर्मकांड के जानकार न हों तो योग्य/अयोग्य समझेगें कैसे? अगर आप इस मुद्दे पर संवेदनशील हैं तो अपने किसी परिचित के माध्यम से आचार्य की व्यवस्था करें।
एक विकल्प यह है कि आप अपना आचार्य अपने साथ स्वयं ला सकते हैं, जो पहले गया में पिंडदान करा चुके हों।

16. क्या जजमान अपना आचार्य/पुरोहित स्वयं ला सकते हैं ?
उत्तर- जी हां, खुशी-खुशी।

17. योग्य आचार्य की दक्षिणा क्या होगी ?
उत्तर- यह तो उन्हीं से पूछना होगा ? कम से कम 1000 रुपये प्रति दिन। आप इसका भुगतान 4-5 मिलकर भी कर सकते हैं। शेष दान में आपकी श्रद्धा।
18. धूर्त लोगों से कैसे बचा जाय ?
उत्तर- लालच में न पड़ें, झूठा परिचय न दें। डरने की कोई बात नहीं है। जरूरत पड़ने पर पुलिस से सम्पर्क करें।

19. कैसे जानंू कि मेरा पंडा कौन है ?
उत्तर- इसके लिए सरकारी वेबसाइट एवं स्टेशन पर लगे पंडालों , भारत सेवाश्रम संघ, पंडा संघ (तीर्थवृत्ति सुधारिणी सभा आदि से सम्पर्क करें। समय पूर्व पूछिएगा तो मैं भी पता कर बता सकता हूँ।

20. क्या पंडे के घर पर ही रुकना जरूरी है ?
उत्तर- नहीं।

21. गया धाम पर कौन ब्राह्मण होते हैं ? ये हमारे यहाँ क्यों नहीं होते ?
उत्तर- हरेक क्षेत्र में अलग-अलग ब्राह्मण होते हैं और तीर्थों के ब्राह्मण तो अलग होते ही हं,ै वे वहाँ कैसे मिलंेगे। यहाँ दो प्रकार के ब्राह्मण इस अनुष्ठान में आपकी मदद करते हैं -
पंडे - जो केवल अनुष्ठान की सफलता का आशीर्वाद देते हैं। इनका क्षेत्र बंटा हुआ है -
गया शहर में - गयावाल एवं धामी पंडे
धर्मारण्य में - श्रोत्रिय
मातंग वापी में - मग ब्राह्मण
पुनपुन घाटों पर - मग ब्राह्मण
श्राद्ध कराने का काम (आचार्यत्व) गयावाल एवं धामी पंडे नहीं कराते। गयावाल बहुत हीं धनी एवं जमींदारी शैली वाले दबंग लोग रहे हैं। अभी भी ये शान शौकत से रहते हैं। इनके कर्मचारी/नौकर ही ज्यादा काम संभालते हैं। इनका आवास शहर के दक्षिणी भाग में है, जो अंदर गया कहा जाता है। इनके घर बड़े-बड़े हैं, धर्मशालाओं की तरह। ये यात्रियों के आवास की भी जिम्मेवारी लेते हैं।
धामी लोग प्रायः आवास की जिम्मेवारी नहीं लेते। धामी पंडे, धामी टोला में रहते हैं। ये तुलनात्मक रूप से गरीब और कम प्रभावी हैं। दोनो एक दूसरे को अप्रामाणिक और स्वयं को सही बताते हैं। आपको इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए। ऐतिहासिक शोध करना हो तो बात अलग है। सत्य जानकर आपका कर्मकाण्ड फँस जा सकता है।
इतिहास पर अलग से जानंे- गयावाल पंडे एवं रानी अहिल्या बाई ।
पुरोहित के रूप में सम्पूर्ण भारत के ब्राह्मणों को श्राद्ध कराने का अधिकार है। स्थानीय स्तर पर परम्परा से निम्नलिखित ब्राह्मणों के जातियों के लोग पुरोहिती का काम करते हैं।
मग/शाकद्वीपी, श्रोत्रिय, क्राैंचद्वीपी, कान्यकुब्ज, सरयूपारी, गौड़, मैथिल, बंगाली, उडिया एवं दक्षिण भारतीय, जिनका मैं नाम नहीं जानता। जानना जरूरी इसलिए नहीं कि आप स्वयं चुन सकते हैं। पंडा दबाव नहीं दे सकते कि अमुक व्यक्ति ही पुरोहित होगा।

22. क्या पितृपक्ष में ही पिंडदान होता है या अन्य तिथियों एवं महीनों में भी?
उत्तर- सर्वाधिक लोग इसी अवसर पर आते हैं परन्तु कई क्षेत्रों के लोग दूसरे समय भी आते हैं। यह निर्णय भारत के विविध क्षेत्रीय परम्पराओं के अनुसार होता है।

23. मुझे पितृपक्ष की किन तिथियों में पिंडदान करना चाहिए ?
उत्तर- यह प्रश्न आप अपने कल के बुजुर्गों या पुरोहितो से पूछे तो बेहतर होगा या फिर अपनी क्षेत्रीय पहचान बताएंगे तो मैं पता लगाने का प्रयास कर सकता हूँ।

24. कम से कम कितने दिनों में और कहाँ पिंडदान करें ?
उत्तर- हिन्दू धर्म लचीला है। आप कुछ भी नहीं करें तो आपका कौन क्या बिगाड़ लेगा ? एक से छोटी संख्या तो होती नहीं तो उतने में भी चलेगा। आज की व्यस्त स्थिति में तीन, चार, पाँच सात की भी चलन है। वस्तुतः यह खानापूरी है। पूरे अनुष्ठान में तो सच पूछिए 25 रोज लग ही जाएंगे।

25. क्या स्त्री या पुरुष अकेले भी पिंडदान कर सकते हैं ?
उत्तर- गया में सभी। पति या पत्नी कोई भी पिंडदान कर सकते हैं। सीता ने राम की अनुपस्थिति में पिंडदान किया था।

26. अपने परिवार वालों के अतिरिक्त अन्य का भी पिंडदान किया जा सकता है ?
उत्तर- बेशक, सभी जीव जंतुओं के लिए श्राद्ध किया जा सकता है, जो पितृ लोक निवासी हैं। समस्त देवताओं एवं ऋषियों के लिए तर्पण किया जाता है। मित्र, बंधु बांधव व समस्त संसार के लिए आप पिण्डदान कर सकते हैं, बशर्ते वे जीवित न हों।

27. गया तीर्थ का वर्णन किन वैदिक ग्रंथों में मिलता है ? इसका ऐतिहासिक साक्ष्य क्या है?
उत्तर- वेदों में नहीं, वायु पुराण में मिलता है। उस अंश की प्रमाणिकता पर आधुनिक विद्वानों को संदेह है, पर गया श्रद्धा तो अति प्राचीन है। दरअसल वायु पुराण के इस अंश की प्राचीन पांडुलिपि का संदर्भ ही नहीं लिखा गया कि किस पांडुलिपि के आधार पर यह अंश छपा। संग्रहालयों में संकलित कुछ पांडुलिपियों में अनेक अंश नहीं मिलते, विशेषकर तीर्थों की आधुनिक स्थिति के मामले में। इसी तरह बनारस के भेलुपुर का वर्णन संदेह पैदा करता है। मूल मामला/आशंका गयावाल ब्राह्मणों की उत्पति वाला है।
गया में रानी अहिल्या बाई के द्वारा जीर्णोद्धार के पहले का नियम, ऐतिहासिक साक्ष्य, शिलालेख वगैरह, कुछ ऐसा नहीं मिलता, जिसमें गयावाल पंडों का वर्णन हो।
गयावालों का धामी पंडों एवं भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द से लंबी लड़ाई धार्मिक वर्चस्व एवं पिंड वेदियों पर चढ़ाने को लेकर चली है। यह विवादास्पद विषय है।

28. क्या ब्राह्मणों का दक्षिणा माँगना उचित है ?
उत्तर- बिल्कुल उचित है। दक्षिणा का मतलब है ब्राह्मण की बौद्धिक क्षमता के एवज में दिया जाने वाला पारिश्रमिक। वैदिक काल से मनमानी दक्षिणा माँगी जाती रही है। हाँ, अनिवार्य कर्म जैसे - नित्य एवं नैमित्तिक, नामकरण, विवाह, श्राद्ध आदि पूरी कराना भी ब्राह्मण की जिम्मेवारी है। अतः गरीब आदमी को भी कोई सही ब्राह्मण इसलिए ना नहीं कह सकता कि उसकी मनमानी दक्षिणा वह नहीं दे सकता है।

29. क्या श्राद्ध के समय बच्चों को लाना उचित है ?
उत्तर- छोटे बच्चों को न लाना ही उचित है। वैसे आपकी मर्जी।

30. पिंडदान के लिए प्रस्थान करने हेतु यात्रा का मुहूर्त क्या है ?
उत्तर- परम्परानुसार कहा भी गया है कि गया एवं गोदावरी की यात्रा पर गुरु के अस्त होने आदि का विचार नहीं किया जाता क्योंकि यह तो चातुर्मास में ही होता है।

31. पिंडदान करने के लिए समय का निर्धारण कैसे किया जाता है ?
उत्तर- क्षेत्रीय परम्पराओं के अनुसार।

32. गयावाल पंडों की उपाधियाँ अजीबोगरीब क्यों हैं ?
उत्तर- यह विवादस्पद विषय है। इसका उत्तर गयावालों से ही लीजिएगा जब गया आइएगा।

33. ऑन-लाइन पिंडदान क्या है ?
उत्तर- यह एक नई बहस है कि आपके बदले में कोई व्यक्ति गया में पिंडदान करे और आप इंटरनेट से देखते रहंे और इस आयोजन के लिए भुगतान करें।
इसे गया के पंडों एवं विद्वत-परिषद ने मान्यता नहीं दी है । जब आप ऑन लाईन श्राद्ध नहीं करते तो गया श्राद्ध क्यों करेंगे और प्रतिनिधि किन-किन मामलों में बने, यह बड़ा बिवाद है - धर्मपत्नी तो होती है किन्तु धर्मपति नहीं होता। दत्तक पुत्र तो होता है पर उसकी माता किसी की पत्नी नही हो पाती।

34. क्या इसकी धार्मिक मान्यता है ?
उत्तर- अभी नहीं है, आगे भगवान जानें।

35. क्या इस अवसर पर किसी मित्र या परिवार के यहाँ रुकना मना है ?
उत्तर- श्राद्ध शब्द से ही लोग डरते हैं। श्राद्ध के नियम भी अलग होते हैं तो आपके मित्र को थोड़ी परेशानी तो हेागी, ही और अगर सभी लोग मित्र के घर रुकें तो पंडों के घर कौन रुकेगा? जरूरत पड़ने पर लोग मित्रों के घर रुकते ही हैं। आम तौर पर नहीं रुकते। यह अति धर्म भीरूता या शंकालुचित्त की समस्या है अन्यथा कोई दिक्कत नहीं है। रिश्तेदारों के घर रुकने से पूरा परहेज करें वरना शांति भंग की आशंका बनी रहेगी। दरअसल यह तीर्थयात्रा है, रिश्तेदारी या मित्र के घर मस्ती की यात्रा नहीं है। सारी बातें परिस्थिति सापेक्ष हैं।

36. गया श्राद्ध शुभ कर्म है या अशुभ कर्म ?
उत्तर- यह शुभ-अशुभ से अलग अवसरविशेष पर किया जाने वाला कार्य है। इसे नैमित्तिक एवं पार्वण कहा गया है। अगर आप प्रेत शांति के लिए आते हैं तो अशुभ निवारक है। अगर पितृ-प्रतिष्ठा एवं पितरांे को स्वर्गलोक भेजने के लिए आते है तो यह शुभ ही शुभ है। इसे श्राद्ध नाम के कारण अशुभ नहीं माना जाना चाहिए न ही यह विवाह की तरह मंगलकारी है, जिसके लिए मांगलिक विधियों की आवश्यकता है।

37. क्या इस अवसर पर छूत भी लगती है ?
उत्तर- बिलकुल नहीं। धर्म शास्त्रों में ऐसा विधान नहीं है। सच यह है कि काशी से पश्चिम में रहने वाले लोग काशी पूर्व के क्षेत्र को अपवित्र मानते हैं। वे अहंकार की दुविधा में रहते हैं। गया, जगन्नाथपुरी की यात्रा भी करते हैं और इस अपवित्र क्षेत्र में आने का प्रायश्चित्त भी।
मिथिला राजा रामचन्द्र की ससुराल है अतः वहाँ से हर मामले में हार माननी पड़ती है। मगध के साथ रक्त संबंध और शत्रुता दोनों ही महाभारत काल से ही है। राजा के साथ बेमतलब प्रजा भी हिन्दुस्तान-पाकिस्तान करती रहती है। ऐसे लोगों को घर जाकर पुत्र बिरादरी को भोजन कराकर उसकी स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती थी। कुछ लोग उत्सव की मानसिकता में भंडारा भी कराते हैं और लोगों को अपनी तीर्थयात्रा के गौरव से अभिभूत करना चाहते हैं।

38. क्या गया श्राद्ध के बाद अपने घर में एक वर्ष तक विवाह आदि मांगलिक कार्य की मनाही है ?
उत्तर- बिल्कुल नहीं। सामाजिक दबाव तो केवल भंडारे तक ही सीमित रहता है।

39. क्या बौद्ध एवं जैन भी पिंडदान करते हैं ?
उत्तर- हाँ। नेपाली लोग तो एक हाथ में धर्मचक्र भी साथ-साथ धुमाते रहते हैं। अग्रवाल जैन तो रात-दिन में दो बार धर्म बदलते हैं। उन पर धर्म का नियम कौन लागू कर सकता है। ओसवाल मारवाड़ियों की पकड़ भी दोनो ओर है परन्तु उनका मुख्य धर्म जैन ही है।

40. अन्य धर्मावलंबियों भी क्या पिंडदान कर सकते हैं ?
उत्तर- परम्परा से तो नहीं करते । जो विष्णु को ही नहीं मानते उनकी विष्णुलोक में क्यों श्रद्धा होने लगी। आज के युग में विदेशी/एन.आर.आई. की बड़ी औकात है। उनके लिए धर्म-मर्यादा का कोई
बन्धन नहीं।
41. विष्णुपद मंदिर का द्वार पश्चिम में क्यों हैं ?
उत्तर- यह नया है। एक जिला अधिकारी ने यात्रियों की सुविधा के लिए बनवाया है। इस पर वास्तु कीदृष्टि से विचार व्यर्थ है।
42. गया गजाधर का क्या मतलब है ?
उत्तर- गजाधर का मतलब है गदाधारी विष्णु। विष्णुपद मंदिर तो केवल पिंडवेदी है। मूल मंदिर तो उसके सटे गदाधर-गजाधर विष्णु का है और उसके सामने देवधाट खुलता है। यह थोड़ा क्षतिग्रस्त है। इसका वास्तु शिल्प अलग है। विष्णुपद मंदिर तो अहिल्या बाई का बनवाया हुआ है।
43. उडियाएल सतुआ पितरन के क्यों कहते हैं ?
उत्तर- प्रेतशिला पहाड़ी पर एक शिला खंड है। यह सबसे ऊँचा है। पिंडवेदी के पास ही स्थित इस वेदी पर सतू डाला जाता है जो हवा के झोंके के साथ चारो तरफ छा जाता है। लोग यह भावना करते है कि जन्म जन्मांन्तर में भी जिन पितरो को मुझसे पिंड पाने की इच्छा रही हो वे सभी सतू को पाकर तृप्त हों।
इसे ही मुहावरे का रूप दिया गया कि जो व्यर्थ चला गया, उसे छूठी श्रद्धा का रूप देकर गौरव पूर्ण बताया जा रहा है।
44. पिंड वेदियाँ कितनी हैं ? कहाँ-कहाँ पिंडदान जरूरी है ?
उत्तर- सारी पिंडवेदियों की संख्या एवं स्थान के बारे में मतांतर हैं। कई पिंडवेदियों पर अतिक्रमण हो गया है और मकान बन गए हैं ।
गयावाल पंडे दावा तो सर्वाधिक करते हैं परन्तु उनकी रुचि यही रहती है कि विष्णुपद के आसपास उनके वर्चस्व क्षेत्र तक में ही सारी पिंडदान की प्रक्रिया पूरी हो जाए। एसलिए जिसे जो मन में आता है, बताता है। वायु पुराण के अनुसार पूरे गया क्षेत्र में पिंड वेदियाँ हैं।
प्रोफेसर गणेश सिंघल, भूगोल विभाग, मगध विश्वविद्यालय ने इस पर शोध किया है। इस समय प्रचलित वेदियों के चित्र एवं सूची अलग से दिए जाएंगे वहीं से आप समझ सकते हैं।

45. क्या इस विषय पर कोई प्रामाणिक पुस्तक उपलब्ध है ?
उत्तर- उपर्युक्त। गीताप्रेस गोरखपुर के द्वारा एक पुस्तक इस विषय पर प्रकाशित की गई है। यह भारत के पश्चिमी क्षेत्र जैसे - उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश पंजाब, राजस्थान, हरियाणा आदि के लिये उपयोगी है। अन्य हिंदी भाषी लोग भी इस पुस्तक के आधार पर गया श्राद्ध के विषय में अच्छी जानकारी पा सकते हैं। मूल्य मात्र 20 रुपये हैं। आसानी से उपलब्ध भी है।
वैसे मानववैज्ञानिक दृष्टि से प्रो. एल.पी. विद्यार्थी की पुस्तक राँची से प्रकाशित है।

46. सामान्य श्राद्ध एवं गया श्राद्ध में क्या अंतर है ?
उत्तर- सामान्य श्राद्ध मृत्यु के बाद वार्षिकी तक किए जाने वाले श्राद्ध को कहते हैं। गया श्राद्ध पार्वण श्राद्ध है। यह पितृपक्ष के विशेष पर्व पर आयोजित होता है।

47. क्या सभी जगहों पर गाड़ियाँ जाती हैं ?
उत्तर- नहीं। भीड़ के कारण कई जगहों पर सवारी ले जाना मना रहता है और पहाड़ियों तथा नदी तालाब के आसपास तक ही चार पहिया वाहन जा सकते हैं।

48. पहाड़ी पर चढने की क्या व्यवस्था है ?
उत्तर- पालकी/डोली पर बैठाकर मजदूर कंधों पर लादकर उन्हें ले जाते हैं जो पहाड़ी पर नहीं चढ़ सकते।

49. गया के आस-पास क्या दर्शनीय है ?
उत्तर- बोधगया, राजगिर, नालन्दा, पावापुरी, पारसनाथ, कौआकोल, इटखोरी बगैरह।

50. गया का कौन सा सामान मशहूर है और कहाँ से खरीदना चाहिए ?
उत्तर- मिठाइयों में - तिलकुट और अनरसा। (इसे रमना या टेकारी रोड से खरीदें)
कपड़ों में हैण्डलूम - मानपुर से।
मिक्सड रेशमी वस्त्र - मानपुर एवं नवादा से।
पत्थर के सामान - चाँदचौरा एवं पत्थलकट्टी गाँव से।
51. क्या गाइड की व्यवस्था है ?
उत्तर- नहीं। पंडे ही मार्गदर्शक की व्यवस्था करते हैं। यह तीर्थ अनुष्ठान की बात है, पर्यटन की नहीं कि गाईड मिलेंगे।
52. इस समय गया की शांति-व्यवस्था कैसी है ?
उत्तर- ठीक ठाक है। सामान्य है।

53. क्या अपना पिंडदान स्वयं भी किया जा सकता है ?
उत्तर- हाँ अगर आपने अपना श्राद्ध स्वयं जीवित रहते हुए भी कर लिया हो तो गया श्राद्ध भी कर सकते हैं।

54. मेरे संतान का देहांत हो गया है। क्या पिता पुत्र का पिंडदान कर सकता है ?
उत्तर- हाँ, ऐसा संभव है, परम्परा से मान्य है।

55. क्या पिंडदान के समय या मंदिर में पूजा-पाठ अनुष्ठान में जातीय स्तर पर कोई रोक-टोक है?
उत्तर- नही,ं सभी वर्णों की सभी जातियों को पिंडदान का अधिकार है।

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