शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

देशी अर्थ शास्त्र: कारू का खजाना


ये कारू कौन हैं? संस्कृत में इन्हें कुबेर कहते हैं। देवता एक वर्ग है। इसके अंतर्गत कई प्रकार के देवता आते हैं। इस वर्ग को देव योनि कहा गया है। देव, असुर, नाग, यक्ष, गंधर्व, राक्षस, पिशाच, गुह्यक, सिद्ध एवं भूत ये सभी मनुष्यों द्वारा पूजित भी होते हैं इसलिए इन्हें देव योनि भी कहते हैं। यह विवरण ‘अमर कोश’ का है।
कुबेर एक यक्ष हैं। कुछ लोग यक्षों को गुह्यक या गुह्य भी कहते हैं। इनका निवास हिमालय में माना गया है। सारी धन दौलत न सही दुर्लभ धन-दौलत, खाश कर रत्न एवं सोना चांदी जैसे दुर्लभ रत्न इनके पास भारी मात्रा में होता है। इनकी स़्ित्रयां भी संपत्ति पर पूरा हिस्सा रखती हैं। ये मांसाहारी होते हैं और इन्हें मांस के अतिरिक्त सीधा रुघिर पीना भी पसंद आता है।
ये प्रसन्न होने पर मांगने पर प्रचुर धन देते हैं। इनकी औरतें भी घूमती रहती हैं और वे किसी अन्य पुरुष से किसी भी प्रकार, जैसे- मां, बहन, बेटी का संबंध भी बना सकती हैं। ये यक्ष-यक्षिणी वादे के पक्के होते हैं और इन्हें वादा खिलाफी एकदम नामंजूर होता है। जैसे दिल खोल कर देते हैं उसी तरह भयानक रूप से वसूलते भी हैं। ये राज्य या समाज व्यवस्था की जगह निजी वादों एवं अपने संगठनात्मक नियमों में अघिक भरोसा रखते हैं। ये मूलतः शैव हैं और कुबेर शिव से मैत्री भाव रखते हैं। हिमालय में रहने पर भी ये रंग से काले होते हैं, लंबे होते हैं और इनकी स़्ित्रयों के विशाल लंबे स्तन/पयोधर भी होते हैं। इनकीे आराध्य देवी गुह्येश्वरी हैं।
बाद में बौद्ध धर्म में गुह्य समाज साधना परंपरा विकसित हुई। मगध से ले कर हिमालय नेपाल तक इनके केन्द्र विकसित हुए। अन्यत्र भी बने होंगे, जिनका मुझे नहीं पता।
इनके सामाजिक संदर्भ को उपर्युक्त विवरण से समझा जा सकता है। इनका कोई राज्य नहीं होता। मौका पड़ने पर संभी देवता, असुर, नाग या राजा भारी धन इन्हीं से प्राप्त करते हैं। ऐसे प्रसंगों, कथानकों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। मतलब कि इस पहचान से स्पष्ट होता है कि राज्य व्यवस्था से अलग भी धन की कोई व्यवस्था भारत में हो सकती है और रही है। लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से निकली हैं। वे विष्णु भगवान की पत्नी हैं। विष्णु राजा की भांति हैं। इस व्यवस्था में राजा ही राज्य एवं धन दोनों का स्वामी है। यक्ष-यक्षिणियों की समानांतर सत्ता है। वे लक्ष्मी या नारायण विष्णु के अधीन नहीं हैं।
इस प्रकार से भारतीय समाज की अर्थ व्यवस्था का एक अलग चित्र बनता हैं, जो तुलनात्मक रूप से कम चर्चित रहा है। अन्य पक्ष अगली किश्त में।

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