शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

बोलते समय ही झूठ

‘‘वदतो व्याघात’’
भारतीय तर्क प्रणाली में कुछ बातों को ‘‘वदतो व्याघात’’ कहा गया है, जैसे कि- खरहे की सींग, आकाश कुसुम, आग से सिंचाई आदि। यह तो बोलते समय ही झूठ है। इस पर चिंतन मनन क्या?
ये उदाहरण गैर धार्मिक और गैर राजनैतिक हैं। इसलिये इन्हें बोलते ही झूठ समझ लेना आसान है लेकिन जैसे ही किसी राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक या सांस्कृतिक झूठ के उदाहरण को सामने लाया जाता है, उसे समझते हुए भी विरोध में स्वर उठने लगेंगे। ऐसा इसलिये कि उस झूठ के प्रति ऐसी श्रद्धा रहती है कि उस माने हुए सच, न कि वास्तविक के प्रति लोग सैकड़ों वर्षों से मरने-मारने पर उतारू रहे हैं। उस झूठ पर ही उनकी पहचान रही है। अतः मुझे मालूम है कि इस शृंखला के पोस्टों पर मुझे चारों तरफ से लानत-मलामत की सौगात मिलने वाली है।
सर्वहारा की तानाशाही में हर्ज क्या है? यह ऐसा ही सवाल है। सर्वहारा भला तानाशाही क्या करेगा? और तानाशाह भी कभी सर्वहारा हो सकता है क्या? सर्वहारा के पक्षधर होने का दावा करने वाले तानाशाहों की पोल खुल चुकी है। सर्वहारा की तानाशाही न हो सकती थी, न हुई। इस सरल बात को समझने की कोशिश करने वाला हर आदमी बुर्जुआ और पता नहीं क्या क्या सिद्ध कर दिया जायेगा।
इसके समानांतर एक उदाहरण लेते हैं। ‘‘रामराज्य एक आदर्श भारतीय समाज व्यवस्था है।‘‘ कौन सा राम राज्य? कब? कैसा था? और उस समय के लोग भी उससे प्रसन्न थे क्या? संपूर्ण न सही बहुसंख्यक और उससे जुड़े हुए लोग भी सही? कौन सा रामराज्य लाना है? पहले वाला या कि कोई नया ब्रांडेड? उसमें न रावण खुश, न सीता? एक कथा के अनुसार राम के लगभग पूरे परिवार ने आत्महत्या नहीं जल समाधि ले ली। यह थोड़ी कम प्रचलित कथा है। तुलसीदास जी ने इसे नहीं लिखा है। पुराने रामराज्य में तो न चुनाव होता, न ही मोदी जी जैसे वैश्य वर्णीय को सिंहासन मिलता।
मेरा तो पहला अपराध यही हो गया कि मैं सर्वहारा की तानाशाही और रामराज्य दोनों को समझने की जुर्रत कर रहा हूं। यह तो यूरोपीय एवं भारतीय दानों परंपरा की निष्पाप दिव्यात्माओं की स्थापनाओं पर सवाल है। लेकिन भक्त मित्रों मुझे दोनों ही वदतो व्याघात लगे, आकाश कुसुम की तरह या खरहे की सींग की तरह। यदि किसी को नहीं लगता वह मुझसे समझदार और दिव्य दृष्टि वाला हो सकता है। सपनों के सौदागर इसी तरह के वदतो व्यघात  को इतनी अधिक भावनात्मक उत्तेजना से पेश करते हैं कि उसे समझना ही गुनाह माना जाता है।
मूर्खता के आंदोलन के धार्मिक उदाहरण पर अगले पोस्ट में।

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