गुरुवार, 10 जुलाई 2014

अर्थ/अनर्थ का शास्त्र

शब्दार्थ
अर्थ/अनर्थ का शास्त्र और तर्जुमे का खेल
आज की शिक्षित पीढ़ी और खाश कर हिन्दी भाषी पीढ़ी साम्यवादी/साम्राज्यवादी अनुवादकों के तर्जुमे/अनुवाद के कारण अनेक मामलों में भ्रांत धारणाओं का शिकार है। मघ्यमार्गी, राष्ट्रवादी कहने वालों ने इस समस्या पर ध्यान ही नहीं दिया और पारंपरिक संस्कृतनिष्ठ अनुवादकों ने अपनी परंपरा को प्रगट करने की जगह केवल क्लिष्ट जटिल शब्दों को अनुवाद के बतौर पेश किया। विज्ञान की चोरी का उदाहरण मैं ने रखा है। आज अर्थ शास्त्र को देखते हैं। वैसे भी आज बजट का दिन है।
हम लोगों के समय में भी कालेजों में यही पढ़ाया जाता था कि अर्थशास्त्र के जनक आदम स्मिथ हैं। साथ ही सारे पैमाने यूरोपीय, शब्द या तो यूरोपीय या भारतीय शब्दों को बिना उनके पूर्व प्रचलित अर्थ के जाने हुए प्रयोग।
भारत में अर्थ शास्त्र की एक स्वतंत्र धारा रही है। इसके जनक जो हों फिर भी पहली विस्तृत पुस्तक आचार्य विष्णु गुप्त उर्फ चाणक्य द्वारा लिखी गई मिलती है। उसके बाद भी यह सिलसिला जारी रहा। इस शास्त्र की परंपरा में अर्थ का मतलब है- आजीविका, चाहे वह शिल्प हो, खेती, विपणन या सेवा, और उस पर अनेक प्रकार के कर लगा कर राज्य कोश को बढ़ाना और श्रेष्ठी वर्ग को प्रसन्न साथ ही इस बात की सावधानी रखना कि प्रजा में क्षोभ न हो और वह बगावत पर न उतर जाये।
भारतीय पारंपरिक अर्थ शास्त्र भी साम्राज्यवादी है। लेकिन आधुनिक साम्राज्यवादी इसका नाम नहीं लेना चाहते, न कांग्रेसी विद्वान न ही संघी। वामपंथियों के भारतीय ज्ञान से सर्वाधिक नफरत है। भारतीय पारंपरिक अर्थ शास्त्र में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के करों का प्रावधान है। साथ ही पूरी सूची दी गई है कि उत्पादक, विक्रेता, सरकारी कर्मचारी तो चोरी करते ही हैं। मनोरंजन आदि सेवा कर्म करने वाले भी कर में चोरी करते हैं।
श्रीमान चाणक्य जी ने तो वेश्यावृत्ति का भी बखूबी अध्ययन किया और भिन्न प्रकार की वेश्याओं द्वारा वेश्यावृत्ति के विभिन्न चरणों पर अलग अलग कर निर्धारित किये तथा उसकी वसूली के उपाय भी बताये।
आ कल ब्राह्मण लोग चाणक्य भक्ति में लीन है। उन्हें यह जान कर शायद ही अच्छा लगे कि श्रीमान चाणक्य जी ने ब्राह्मणों को भी ठगने के उपाय बताये। गीता के श्लोकों में ब्राह्मण की जो आजीविका बताई गई हो। सच यह है कि जंगली एवं ऊसर जमीन को सुधार कर उसे खेती लायक बनाने एवं सिंचाई की व्यवस्था करने में ये कुशल रहे हैं। जमीन के प्रति इनके लगाव के कुछ ही अपवाद हैं।
इसलिये श्री चाणक्यजी कहते हैं कि ब्राह्मणों को बरबाद जमीन दान करो, वे उसे उपजाऊ बना देंगे। फिर किस बहाने उसे हथियाने से किसी को कौन रोक सकता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय अर्थशास्त्र और अर्थशास्त्री पर कठोर तर्जनी-दर्शन......।प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और आशीष।

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