मंगलवार, 13 नवंबर 2012

दीपावली और काली




दीपावली और काली
लोग दीपावली के दिन आम तौर पर लक्ष्मी जी को पूजते हैं। उनके बारे में बहुत जानते-समझते भी हैं परंतु कुछ लोग काली की उपासना करते हैं। काली जी के बारे में यह समझ सुविधा जनक है कि वे दुष्टों को मारती हैं। उनके हाथ में जो नरमुंड है, वह किसी दुष्ट का है। भक्तों सावधान, वह नरमुंड किसी दुष्ट का नहीं उपासना करने वाले भक्त का है। इसी तरह गले की मुंडमाला भी दुष्टों की नहीं विभिन्न, कोटि के मनुष्यों की है, जो उनके भक्त हैं। दूसरे मत में वह मुंड माला नागरी वर्णमाला के अक्षरों की है।
काली ज्ञान की देवी हैं क्रोध की नहीं। वह ज्ञान जो नग्न सत्य के आधार पर होता है, जिसमें कोई बनावट नहीं है। ऐसा ज्ञान पाने का अधिकारी वही मनुष्य हो सकता है जो काली के रूप का ध्यान कर भी लज्जा, भय, काम एवं घृणा से प्रभावित न हो। जो मृत्यु से न डरे, ताकि पूर्व जन्म का साक्षात्कार करने के पूर्व अपने पिछले जन्मों के पहले होनेवाली मृत्यु की सभी घटनाओं का साक्षात्कार भी सहज रूप से कर सके।
संहार क्रम
योग एवं तंत्र में ध्यान एवं साधना की दो प्रक्रियाएं अपनायी जाती हैं। एक में चूतना को स्थूल से सूक्ष्म की ओर समेटा जाता है। इस समेटने की प्रक्रिया को संहार एवं संवर नाम दिया गया है। काली संहार क्रम की देवी हैं इसका अर्थ हुआ कि स्थूल से सूक्ष्म की ओर चेतना को समेटने के अभ्यास में काली की उपासना की जाती है। साधक अनेक स्तर पर अपनी पहचान को समाप्त होता हुआ अपनी ही गरदन कटता हुआ देखता है। वर्णमाला के वर्णों की विभिन्न ध्वनियां एवं उनकी सम स्तरीय पहचान होती है। काली मानव को उन सभी पहचानों को समाप्त कर उससे ऊपर की चेतन अवस्था में ले जाने वाली हैं।  अपनी पहचान मिटाना, न ही काली की उपासना करना किसी डरपोक आदमी के वश में है। इसलिये डर भगाने हेतु आत्म-नियंत्रित क्रोध की साधना करनी पड़ती है। अन्य बातों को परंपरा से सीखना चाहिये।

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