गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

श्राद्ध है क्या?


आज कल गया में पितृपक्ष मेला है, मतलब? मेला मतलब भीड़ जुटी हुई है, जैसे मेले में जुटती है। यह भीड़ पितरों के पक्ष में है या नहीं, इस पर विचार हो सकता है लेकिल एक बात तय है कि पितरों के नाम पर निश्चित किये पक्ष अर्थात पखवाड़े की अवधि में जुटी है।
इस समय पितृश्राद्ध और पिंड दान हो रहा है। सवाल यह है कि यह हो क्या रहा है? मरे हुए लोगों के लिये यह पिंड क्या काम करेगा और कैसे? उनके लिए श्राद्ध की क्या जरूरत?
मैं यह सवाल बिना किसी पूर्वाग्रह के डाल रहा हूं कि मैं सनातन धर्म का अनुयायी हूं या नहीं। यदि हूं और जैसा की हूं ही तो कम से कम भारतीय बिंबों, पदावलियों, समझ तथा विधियों के अनुसार तो स्पष्ट होनी ही चाहिए श्राद्ध है क्या? यह क्या कि ग्रंथों में इसका यह माहात्म्य है, यह तो केवल श्रद्धा और विश्वास का मामला है।
यदि वस्तुतः हमारे तन, मन, समाज व्यवस्था जैसी भौतिक बातों से इसका कोई लेना देना नहीं हो तो केवल परंपरा के नाम यह कितने दिनों तक चलेगा?
जो भी लोग इसके पक्ष में लिखते-बोलते हैं, उनकी जिम्मेवारी बनती है कि वे इस स्तर पर आ कर इस विषय को स्पष्ट करें कि सामान्य व्यक्ति को भी श्राद्ध और गया श्राद्ध समझ में आ जाए।

1 टिप्पणी:

  1. इधर क्रमशः दश भागों मेेेें विभाजित- गयाश्राद्धःसंक्षिप्तविवेचन नाम से पोस्ट फेशबुक पर डाल रहा हूँ।उसे देखें।पता नहीं गुत्थियां कितना खुल पायी हैं,संशय कितना दूर कर पाया हूं,श्रम कितना सार्थक हो पाया है? निर्णय तो सुधी पाठकगण ही करेगे।साधुवाद।
    पुनश्च, गत वर्ष आपका एक पोस्ट आया था ,गयाश्राद्ध पर- उसे देखना चाहा किन्तु पोस्ट ढूढ़ नहीं पाया।

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