शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

यह कैसी चिंता?

यह कैसी चिंता?
आजकल लोगों को हिंदू धर्म, भारतीय संस्कृति, साधु-संतों पर विश्वास और ब्राह्मण जाति के गौरव की चिंता खूब होने लगी है। मुझे नहीं लगता कि सभी लोगों को सच में ऐसी चिंता है। जो जिससे लगाव रखता हो वह उसकी चिंता करे तो स्वाभाविक है, न सही आदर्शवाद लेकिन इसमें बुराई भी नहीं।
इसके बावजूद क्या आपने कभी सोचा कि आप किसकी चिंता कर रहे हैं? धर्म के व्यापक अर्थ को आपने केवल निर्जीव तक सीमिति कर लिया, ऐसी तो कोई भी स्तुति नहीं। न स्तोत्र, न सहस्रनाम। साधु के धनवान और प्रभावशाली होने में कैसा वैराग्य? आप अपनी बेटियों की अस्मत लूटने वालों को दंड देने के पहले मुल्लाओं को दंडित करने का तर्क दे रहे हैं। कहीं आप भी  ???????????
अगर चिंता के असली मुद्दों की जांच करेंगे तो पायेंगे कि आप हीरे को छोड़ कोयले के पीछे भाग रहे हैं। यह क्या है?-- मैं उन्हीं धार्मिक शब्दावली में पूछ रहा हूं? संकल्प तो मन से करने की बात है? कवच धारण करने की चीज है, न्यास का मतलब होता है घरोहर और उसे सुरक्षित रखना, ये सब बातें कुछ शब्दों  या वाक्यों को दुहराना भर कैसे हो सकती हैं? तंत्र का अर्थ है व्यवस्था या प्रणाली, पद्धति फिर वह केवल  काला जादू कैसे हो सकती है? आप किसी शास्त्र के पक्षधर हैं या अज्ञान के? चेला बनने में बेइज्जती लगती है तो गुरु बनने को क्यों बेचैन हैं? संध्या एक समय का द्योतक है, समयहीन कुछ संस्कृत के शब्दों या वाक्यों को पढ़ने से संध्या भला कैसे हो सकती है? ऋषि अनेक, विद्याएं अनेक, दार्शनिक मत अनेक फिर अंग्रेजों ईशाइयों या उनके परवर्ती मुसलमानों की तरह जबरन एक ही ईश्वर के लिये इतनी जिद क्यों? अनेक जीव एवं अनेक जीवात्मा, अरे छोडि़ये दूसरे की आत्मा, अपने तन एवं मन की कार्यप्रणाली को समझने की फुरसत नहीं और पूरे संसार को सुधारने का बीड़ा उठा लेते हैं। हमारे 33 करोड़ देवी-देवताओं का क्या होगा? आजकल बेचारे पतंजलि जी भी घोर संकट में हैं। उन्होने तो जप करने को कभी शब्दों या वाक्यों को दुहराने के अर्थ में कहा ही नहीं। तज्जपस्त्दर्थभावनम् उसका जप उसके अर्थ की भावना करना कहा है। यह कैसा पतंजलि प्रेम?
हर प्रायोगिक और अनुभवात्मक बात को जानने सीखने समझने की जगह झटपट उसे दुर्लभ, अति गोपनीय, समाज के लिये अनिष्टकारी खतरनाक बताने लग जाते हैं। होश में रहना भला कब बुरा हो गया? समझ कर मानने से क्या खतरा है कि पहले मान ही लिया जाय? इसी तरह हमने अपनी अगली पीढ़ी को या तो मूर्ख या बगावती बना दिया?
इस पर ईमानदारी से सोचें? ज्ञान न होना उतना बुरा नहीं होता जितना बहाने बनाना और अपनी ही अगली पीड़ी को गुमराह करना। और अंत में- जो भी उपर्युक्त बातों को अपने जीवन में आसानी से लाने पक्ष में हों वे सीखें, सच को समझें फिर चिंता करें अन्यथा आशाराम जैसे ठगों का ही वैभव बढ़ाने में आप भी सहयोगी हो जायेंगे।
मैं अपनी जानकारी भर अपने ब्लाग पर लिखूंगा, मुझसे जो पूछते हैं, उन्हें सिखाता भी हूं। जीवन में करने लायक, आज भी सार्थक और उपयोगी बातों के लिये आप का मेरे ब्लाग पर स्वागत है। प्रश्न, सुझाव, अनुभव, जिज्ञासाएं सबका सादर स्वागत है। फेसबुक पर यदि कोई ऐसा ग्रुप हो तो जानकारी दें।

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