शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

पवित्रता का रहस्य 1


भारत में पवित्रता का बहुत महत्त्व है। हर आदमी ही नहीं धर्म, इलाका, भाषा अपने को दूसरे से पवित्र प्रमाणित करने में लगे रहते हैं। यहां भारत में ही पूरब ओर पश्चिम का बहुत फर्क है। जो लोग दोनों छोरों पर गये हों उनके लिये तो सामान्य बात होगी लेकिन जो नहीं गये उन्हें परस्पर एक दूसरे का व्यवहार अपवित्र और गंदा भी लगता है। राजस्थान तथा गुजरात में बरतनों को पानी से घोने से उनकी पवित्रता नष्ट होती है। राजस्थान में उन्हें रेत और राख से साफ कर कपड़े से पोंछना जरूरी है। पानी का इस्तेमाल बिलकुल जरूरी नहीं है। गुजरात में केवल कपड़े से पोंछना पर्याप्त है। पानी से धोना हो सकता है, पर पोंछना जरूरी हैं। रेत या राख की भी अनिवार्यता नहीं है। यही बात उत्तर और दक्षिण के संदर्भ में है। उत्तर में बर्फीले प्रदेश में आदमी कितना नहाये ? समुद्र के किनारे एवं नदी घाटी क्षेत्र में स्नान हर मर्ज की दवा है। सारे पाप स्नान से धुल जाते हैं। नहाने की तिथियों एवं तरीकों से धर्मशास्त्र भरे पड़े हैं।
बौद्ध धर्म को अंतरराष्ट्रीय भी होना है और आलिंगन- चुंबन से परहेज भी रखना है। यहां श्री लंकाई भिक्षु के खिलाफ मोर्चा खुल गया। ‘‘जस करनी तस भोगहु ताता’’। श्री लंकाई भिक्षु पहले पीठ पीछे से ढगड़े की संकीर्ण राजनीति करते थे अब झेलिये स्वयं। कर्मापा जी बोधगया आकर भूल जाते हैं कि महाबोधि तंदिर में जूता पहनना वर्जित है। वे नंगे पांव तिब्बत में कैसे चलें। आदत वैसी ही है। यहां नव कौद्ध आंदोलन के विशेषज्ञ हैं।
       सीधी बात यह है कि आप स्वच्छता का तो मानक तय कर भी सकते हैं। पवित्रता एक मानसिक अवधारणा है, जो न केवल क्षेत्र के भेद से बल्कि व्यक्ति तथा परिवार के भेद से भी भिन्न होती है। अगला पोस्ट- पवित्रता, संखरी और अपैत की रहस्यमयी व्यवस्था

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