गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

आषाढ़ी संवत्सर

आषाढ़ी संवत्सर
भारत में अनेक संवत्सर मनाये जाते हैं। मकर संक्रांति आधारित, और राजा विक्रमादित्य वाला सबसे प्रचलित है। लेकिन इससे लोक व्यवहार नहीं चलता, खाश कर हिंदी पट्टी में। 31 मार्च गया, 1 अप्रैल भी अतः मैं मजाक नहीं कर रहा, तब आखिर हमारा पारंपरिक व्यावहारिक संवत्सर क्या है? व्यावहारिक ममतलब लेन देन खेती गृहस्थी, मजदूरी तनख्वाह वाली। ये सब काम विक्रम संवत्सर से नहीं होते। मैं सवाल पूछ कर ज्ञान की अभिवृद्धि में आपकी सहभागिता को सादर स्वीकार करता हूं और कुछ नई जानकारियों को इकट्ठा भी करता हूं।
हमारे यहां खेत की बंदोबश्ती आषाढ़ में होती है। भूइयां, मुसहर की एक पूजा आषाढ़ी पूजा होती है। कर्ज वापसी, लेनदेन, नये खेतीहर मजदूर की नियुक्ति वगैरह सब आषाढ़ में। मार्च से इसका रिश्ता नहीं, वह अंगरेजी सरकार वाला है। पता नहीं क्यों ? वित्तीय वर्ष को 2 सालों में फंसा कर रखा गया है। वह भी 1ली जनवरी से 31 दिसंबर तक का होता तो क्या संकट आता?
मेरे मन में सवाल है कि आषाढ़ में क्यों? क्या इसका कोई पुराना आधार है या कुछ और? इतना ही नहीं पहले क्या कर सूद आदि की गणना इसी प्रकार कुल दिवसों की संख्या के हिसाब से भिन्न संवत्सरों से की जाती होगी तब तो गिनती में काफी दिक्कत आती होगी? या साल के दिनों का कोई व्यावहारिक मानक होगा?
ज्योतिष एवं भारतीय समाज के अन्य पक्षों के जानकार एवं इतिहासज्ञ कुछ इस बात पर प्रकाश डालें तो अच्छा लगेगा।

3 टिप्‍पणियां:

  1. विषय अच्छा है।खेतीवारी का काम चुकि आषाढ से शुरु होता है,इस कारण आषाढ का तो अपने आप में काफी महत्व है।आषाढस्य प्रथम दिवसे को विद्वानों ने प्रसम(मुख्य,प्रधान) घोषित करने में काफी श्रम किया है-इस पर आदरणीय पं.रंगेश्वरनाथजी (करहरी)से चर्चायें सुना हूँ।वे आषाढ़ प्रतिपदा को काफी महत्वपूर्ण मानते थे।किन्तु कारण मुझे स्मरण नहीं है।कुछ तो रहस्य अवश्य है।धन्यवाद।

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    1. यह मामला मगध के लोक व्यवहार का है, रोजी रोटी का है अतः इस विषय का सटीक आधार भी मगध के शास्त्ऱ में मिलेगा। चाणक्य ने अपने अर्थ शास्त्ऱ में लिखा है- ‘‘ त्रिशतं चतुःपंचाशच्चहोरात्राणां कर्म संवत्सरः। तमाषाढ़ीपर्यवसानमूनं पूर्ण वा दद्यात्’’ मतलब कर्म संवत्सर, जिसके आधार पर वेतन/मजदूरी का भुगतान किया जाय, वह तीन सौ चौवन दिन रात मिला कर होता है। इसकी समाप्ति आषाढ़ी पूर्णिमा को होती है।
      इसके बाद जब तक नये मालिक का चुनाव नहीं हुआ भूइयां/कमियां/कमकर/बनिहार मुक्त। चले आषाढ़ी पूजा, मांस मदिरा का भोग और छुट्टी भी साथ में। गुप्त कर्षण/रात की पहली जोताई तक।

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  2. एक वित्तिय नववर्ष दीपावली से भी प्रारंभ होता है मारवाडी व गुजरात में विशेष। दीपावली पर भी नवीन खाता प्रारंभ के समय कर्ज / व्यापार की पुनर्गणना होती है।

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