शनिवार, 13 दिसंबर 2014

भारतीय इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह 2

भारतीय इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह 2
भारतीय इतिहास लेखन को मेरी जानकारी में निम्न प्रकार से प्रभावित किया गया--
1 यूरोपीय शैली के विद्वान भारत को मूर्ख और अविकसित लोगों का देश साबित करना चाहते हैं ताकि यह स्थापित किया जा सके कि भारतीय लोग सदैव वैचारिक स्तर पर अपने को हीन और यूरोप को श्रेष्ठ मानें। इससे भारत में यूरोपीय शासन और आजादी बाद में भी उन्हीं के नकल को वाजिब ठहराया जा सके।
2 दुर्भाग्य से वामपंथी इतिहासकार भी इसी धारणा वाले हैं। साम्यवादी चिंतन और रेनेसां का विकास योरप में हुआ। इससे भारतीय इतिहास की कोई हानि नहीं। समस्या तब होती है कि जब यह कहा जाता है कि भारत में कुछ हुआ ही नहीं। भारतीय समाज जैसे सीधे जंगली युग से आधुनिक हो गया या अधिक से अधिक कृषिप्रधान समाज से आधुनिक युग में आ गया। वह भी योरप की कृपा से। 
3 इस शैली के इतिहास से इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते कि भारतीय वास्तु संरचनाएं कैसे इतनी जटिल एवं सुदृढ़ हैं? ये जंगरोधी बड़े-बड़े खंभे और बड़े तोप कैसे बनते रहे? वे भी पहाडि़यों की उन चोटियों पर कैसे ले जाये गये जहां हाथी जैसे जानवर का जाना ही असंभव है। ऐसे अनेक प्रश्नों की परवाह वामपंथी और साम्राज्यवादी इतिहासकार नहीं करते।
4 इतना ही नहीं संघी/दक्षिणपंथी इतिहासकार भी इन/ऐसे प्रश्नों का उत्तर ढूंढने में रुचि नहीं लेते। उनका मुख्य लक्ष्य पौराणिक गल्पों में ही अधिक रहता है क्योंकि वे सीधे-सीधे सुविधानुसार भारत की दुर्दशा के लिये मुख्यतः इस्लाम और थोड़ा बहुत ईशाइयत को जिम्मेदार ठहरा कर हर सवाल के उत्तर को स्थापित करते हैं।

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