शनिवार, 2 नवंबर 2013

कितना वैदिक आयुर्वेद

कितना वैदिक आयुर्वेद
                          
यह निबंध एकाधिकार के प्रयासों के विरुद्ध लिखा गया है। आम आदमी को भी वस्तुस्थिति जानने का हक है ताकि वह गलती से किसी एकाधिकारवादी धारा के समर्थन में अज्ञानवश न खड़ा हो जाए।
आयुर्वेद शब्द सुनने से ही लगता है कि यह एक वैदिक शास्त्र है परंतु केवल नाम से उस शास्त्र की वास्तविकता का पूरा पता नहीं चलता। यही बात आयुर्वेद के साथ भी है। सुदूर अतीत से आज तक स्वास्थ्य मनुष्य की सहज आवश्यकता एवं चिंता का विषय है। चूँकि स्वास्थ्य बहुमूल्य है अतः स्वस्थ रखने वाले चिकित्सक एवं मूल्य का महत्त्व समझने वाले व्यवसाई] दोनो प्रकार के लोगों ने स्वास्थ्य की विद्या पर वर्चस्व एवं एकाधिकार के दाव-पेंच लंबे समय से चला रखे हैं। भारतीय स्वास्थ्य संबंधी विद्या के क्षेत्र में भी ऐसा खूब हुआ है। आयुर्वेद को भी अपने कब्जे में करने में कोई पीछे नहीं रह रहा है] चाहे वे वैदिक हों या आधुनिक व्यवसायी।
भारत में वैदिक] वेद से आंशिक सहमत] वेद विरोधी] बौद्ध] जैन] चार्वाक] आदिवासी] असुर] द्रविड़ आदि अनेक धाराओं में उत्पन्न एवं उनमें विश्वास करने वाले लोग पहले से ही रहते आए हैं और बाद में कुछ विदेशी लोग भी आकर बसते गए हैं। ये लोग भी बीमार पड़ते थे और इन्होंने भी स्वस्थ रहने की विद्या विकसित की थी और समकालीन चिकित्सा में अपना योगदान किया था। रावण के यहां वैद्य सुषेण के होने एवं परम विरोधी को भी चिकित्सा सेवा देने की सामाजिक स्वीकृति की बात राम कथा के साथ-साथ चलती है। गैर वैदिक धारा की सामग्री भी लिखित-अलिखित दोनों रूपों में आज भी उपलब्ध है।
आगम एवं निगम दो प्रचलित शब्द हैं। इनका प्रयोग भारत में प्रामाणिक ज्ञान के स्रोत के रूप में होता है। निगम शब्द वैदिक स्रोत के लिए प्रयुक्त होता है। वेद निश्चित हैं] उनके ऋषि निश्चित हैं। उनके आर्ष ज्ञान तथा उस पर निर्भर ज्ञान निगम है। यह Inductive जैसा है । एक निर्दोष सिद्धान्त सब जगह लागू होता है। इससे भिन्न आगम का स्वभाव है। अनेक प्रामाणिक (भरोसेमंद) ज्ञान के स्रोतों से ज्ञान अर्जित करना आगम की प्रक्रिया है। यह Deductive की तरह है। तरह कहना इसलिए कि सीधा-सीधा  या पूरी तरह Inductive या Deductive स्वभाव का नहीं है। पुराण नई शैली में पुरानी बात की शैली है। आगम] निगम] पुराण एवं संहिता (संकलन) की शैली एवं इन शब्दों का प्रयोग वैदिक] जैन] बौद्ध तीनों धाराओं में है और आयुर्वेद ने भी तीनों धाराओं के स्रोतों से ज्ञान राशि का संकलन कर अपनी संहिताओं को आकार दिया है।
आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी इसे स्वीकार किया गया है कि चरवाहों] गडेरियों को भी रोग] चिकित्सा एवं उपयोगी औषधों की पूरी जानकारी रहती है। ये सब ज्ञान तो आगमिक स्वभाव के हैं ही।
निदान का स्वभाव नैगमिक सांख्य आधारित है तो चिकित्सा एवं द्रब्यगुण का शास्त्र आगमिक स्वभाव का] लोक परंपरा से संकलित एवं बहुविध है।
आज आयुर्वेद नाम से जो ज्ञात धारा है] उसमें ही गैर वैदिक पुस्तकों का भी समान महत्त्व है। बौद्ध परंपरा का चिकित्सा एवं रसायन शोधन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध पुस्तक अष्टांग संग्रह वैदिक नहीं है। उसके रचनाकार वाग्भट्ट बौद्ध हैं। नालंदा वि.वि. की रसायनशाला के अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। बराबर पहाड़ी में नागार्जुनी गुफाएँ हैं। नागार्जुन महान रसायनविद बौद्ध सिद्ध थे। आजीवक कौमारभृत्य] जिनके नाम पर बाल चिकित्सा को कौमारभृत्य कहा जाता है स्वयं भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में एक थे। त्रयी&ऋगवेद] यजुर्वेद और सामवेद) सांख्य] ज्योतिष सभी स्वतंत्र धाराएँ है। सांख्य के लिए वेद श्रद्धेय भले ही हों अकाट्य नहीं है। कफ] वात] पित्त का आयुर्वेदीय त्रिदोष सिद्धांत सांख्य के त्रिगुण सिद्धांत पर आश्रित है।
पाशुपत शाखा आगे चल कर रसेश्वर दर्शन में परिणत होती है। वहाँ वैदिक देवताओं का नहीं शिव-पार्वती के रज-वीर्य रूपी गंधक और अभ्रक का वर्चस्व है। शिव सभी बैद्यों के मालिक बैद्यनाथ हैa। काशी के पूर्व में बाबा बैद्यनाथ को कौन नहीं जानता\ अन्य चिकित्सक तो सामान्य भिषक अर्थात वैद्य हैं] बुद्ध महाभिषक हैं। हीनयान परंपरा में आत्म कल्याण की प्रधानता होने के कारण चिकित्सा विषयक सामग्री कम मिलती है किंतु महायान एवं वज्रयान में चिकित्सा संबंधी साहित्य प्रचुर मात्र में उपलब्ध है। प्रयोगिक रूप से ऐसी सभी सामग्री आयुर्वेद का भाग मानी जाती है। इसी तरह आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रचुर देशी साहित्य उपलब्ध हो रहा है। इन दिनों राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन द्वारा कराए जा रहे सर्वेक्षण में मगध में मिलने वाली पांडुलिपियों में आयुर्वेद की पांडुलिपियों की भरमार है।
बौद्ध परंपरा के चिकित्सा शास्त्रीय ग्रंथों की बात छोड़ भी दें तो भी आयुर्वेद का वैदिक होना सिद्ध नहीं होता। इस विषय की आंतरिक परीक्षा करने पर कई रोचक बातें सामने आती हैं। कहने को तो आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है। किंतु शुद्ध वैदिक लोग वेद को तीन ही मानते हैं। वेदों की गिनती त्रयी के रूप में की गई है। अथर्ववेद जिसमें चिकित्सा का रूपकात्मक वर्णन है और औषधियों की स्तुतियाँ हैं उसे बाद में चौथा वेद माना गया। अथर्ववेद से तांत्रिक बहुलवादी धारा का वैदिकीकरण शुरू होता है।
वैदिक माने जाने वाले ऋषि अग्निवेश द्वारा रचित एवं चरक द्वारा संपादित (प्रतिसंस्कृत) चरक संहिता के आरंभ में आयुर्वेद के अवतरण की कथा है। लगता है कि इसे बाद में जोड़ दिया गया है। आरंभ के 60-70 श्लोकों के बाद इस गं्थ में इस आशय के संबोधनों में] ^इस तंत्र में* तंत्रेऽस्मिन्] शब्द का प्रयोग होता है न कि वेदेस्मिन् इस वेद में का। अगर आयुर्वेद मूलतः वैदिक धारा का होता तो वेदेस्मिन् शब्द का प्रयोग होता। यह आंतरिक प्रमाण है] बाहरी नहीं।
आयुर्वेद के उप विभागों के नाम तंत्र शब्द से पूरे होते हैं] जैसे - शल्य तंत्र] शालाक्य तंत्र] प्रसूति तंत्र] अगद तंत्र। तंत्र शब्द वेद के प्रति श्रद्धालु] विरोधी एवं तटस्थ तीनों धाराओं में स्वीकृत है। सबों ने स्वास्थ्य के साथ तंत्र पर पुस्तकें लिखी है। तंत्र अर्थात विस्तृत व्यवस्था] प्रणाली vkSj उसका शास्त्र। तंत्र का अर्थ जादू-टोना मात्र करने का षडयंत्र यूरोपीय है। इस षड़यंत्र पर प्रसिद्ध गाँधीवादी इतिहासकार धर्मपाल जी ने काफी लिखा है।
तंत्र का शाब्दिक अर्थ होता विस्तृत ज्ञानप्रणाली। आयुर्वेद का अंदरूनी और सर्वाधिक प्रयुक्त नाम भैषज्य तंत्र है। अर्थात चिकित्सकों का विस्तृत शास्त्र। किसी भी विषय को समझने एवं सभा में दूसरांे को समझाने के लिए आयुर्वेद ने अपनी स्वतंत्र पद्धति तैयार की है। इसे भी आयुर्वेदयुक्ति या वेदयुक्ति नहीं बल्कि तंत्रयुक्ति नाम से जाना जाता है।

चॅूँकि चिकित्सक सभी धाराओं के हैं अतः यह मानना या प्रसारित करना सही नहीं है कि भारतीय चिकित्सा परंपरा पूर्णतः वैदिक है। इससे देशज ज्ञान की उन बहुविध धाराओं पर वेद सहमत लोगों का एकाधिकार सिद्ध होने लगेगा और फिर केवल वेद सम्मत फार्मूलों को ही आयुर्वेदिक कहने का दुस्साहस भी हो सकता है और इस बहाने चिकित्सा हेतु केवल उन्हें ही प्रामाणिक मनवाने की चलन शुरू होगी। चिकित्सा शास्त्र से बात किसी एक धारा के वर्चस्व की हो जाएगी। इससे अनावश्यक विवाद खड़ा होगा जो संपूर्ण भारतीय चिकत्सा परंपरा को हानि पहुँचाएगा। आयुर्वेदिक कंपनियाँ ऐसी बातों को पीछ पीठे समर्थन देती रही हैं।

1 टिप्पणी:

  1. आयुर्वेद के गूढ़ रहस्यों पर ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए कोटिशः धन्यवाद ..वंदन

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