शब्द, नाद, वाक्
ये तीनो नाम चलते हैं। शब्द और अर्थ तो सभी जानते हैं, नाद प्रायः ध्वनि के लिए प्रयुक्त होता है। नाद किसी भी प्रकार की ध्वनि को कहा जा सकता है। वाक् लगभग मानव की ध्वनि के लिए रूढ़ जैसा हो गया है।
इन तीनों को मिला कर शब्द के चार स्तर माने गए हैं। बैखरी- जो मुंह से बाहर निकलती है, जिसके आधार पर शब्द और अर्थ के बीच संबंध बनते हैं। मध्यमा- लगभग भुनभुनाने जैसी मानवीय आवाज, जो दूसरे को ठीक से सुनाई न पड़े। परा- मन के भीतर की आवाज, जो दूसरे को सुनाई न पड़े। पश्यंती- प्राकृतिक, सूक्ष्मतम ध्वनि, जिसे ध्यान भूमि में तटस्थ भाव से देखा/अनुभव किया जाए।
इस संार में ज्यादा उलझनें और चालाकियां बैखरी और परा के साथ है। विशेषज्ञ बैखरी स्तर के नाद का भी उचित-अनुचित अनेक प्रयोग करते हैं। यह काम केवल भारत में ही नहीं होता, लगभग सभी जगहों पर होता है।
सुविधा के लिए पहले बैखरी की कार्यप्रणाली और उससे संबंधित सामाजिक खेल को समझने का प्रयास करेंगे।
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वर्णमाला एवं शब्दार्थ संबंध
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