वाह रे, अनुपात!
आपने पहले अंगुल आदि मापों के बारे में पढ़ा। आज सरकारों द्वारा प्रमाणित माप-तौल के बाट का प्रयोग होता है। पहले जब ऐसा न हो कर गुंजा, रत्ती जैसे तौल के माप थे तब क्या होता होगा? और वह सही कैसे होता होगा? खाशकर सोना-चांदी जैसे तौलों में?
भारत जैसे बड़े देश में लोगों ने यह काम अपने जिम्मे रखा था। अपने जिममे अर्थात व्यापारी वर्ग के जिम्मे। सोना चांदी में तो वही नियम आज भी लागू है। हर सर्राफा बाजार में एक दुकान मुख्यतः गहने तौलने के लिये होती है। उस दुकान ने जो वजन बता दिया उसे पूरा सर्राफा बाजार मानता है। लोगों ने इसी तरह हर जगह के लिये अपने माप बना लिये थे। इसी से काम चलता था।
अब आते हैं अनुपात पर- यदि जड़ी बूटी वाली कोई दवा या मिठाई बनानी है तो कोई छोटा माप लेते हैं, वह अपने धर का चना या मटर या आम- अमरूद भी हो सकता है। एक आम बराबर गुड़, उससे दुगना बेसन, उससे आधा मेवा, उससे आधा अदरख इस प्रकार आनुपातिक भाषा में सारे आनुपातिक मापों का विवरण । हो तो गया। असली बात तो आनुपातिक संबंधों में है नकि सेर, किलो या क्विंटल में। खेती के लिये बीज, खाद का निर्णय करना है, अपने व्यवहार के लिये यदि जमीन नापनी हो तो बस अपने हाथ से लकड़ी या रस्सी नापी, फिर उसके आनुपातिक अंतर से बांस, फिर कट्ठा या बिस्वा, उससे आगे जो नापना हो नाप लिया। सामाजिक व्यवहार के लिये नापना हो तो फिर जमीन नापने वाले पंच या स्थानीय जमींदार के यहां सुरक्षित माप का प्रयोग करना होगा।
इसलिये अनेक ग्रंथों में केवल आनुपातिक अंतर ही लिखा गया माप की इकाई नहीं। वास्तु के मामले में वास्तुकार को गजधर भी कहा जाता है। उसके पास अपनी एक लोहे की छड़ी होती थी/है। वह गौरव के साथ उसे ले कर चला करता है/था। उसमें माप अंकित होते हैं। न रहे गज तो क्या? अपना बीता, हाथ तो अपने पास है ही। उसीके आनुपातिक अंतर से सारा काम हो जायेगा। जब यूरोपियन यहां आये तो व्यापार में उन्हें बड़ी परेशानी हुई। नाम तो माप का एक ही लेकिन माप या तौल में सामग्री में अंतर मिलता और पंचायती तौल के बिना काम संभव नहीं । अगर व्यापार से सामाजिक बहिष्कार करना हो तो बस पंचायती तौल वाले को कह दें कि इस व्यक्ति का तौल नहीं करना है। सारा खेल खत्म।
इसी प्रकार की समस्या पहले अर्थात हजार साल पहले आई और भारत के लोगों ने उड़ीसा तथा मगध के लोगों को इस काम को संभालने की जिम्मेवारी सौंपी। यहां के गणितज्ञों को अनुपातिक की व्याख्या करने, आनुपातिक संबंधों का वर्गीकरण करने, विभिन्न प्रकार के चार्ट बनाने का काम सौंपा चाहे वह मामला किसी भौतिक सामग्री का हो या ग्रहीय पिंडों की गतिविधियों का। शिल्प, औषध तथा नक्षत्रवेध सभी संदर्भों में, सभी विद्याओं में कालिंग और मागध माप प्रमाणिक माने गये। ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि यहां के लोगों ने आनुपातिक अंतरों एवं उसके संबंधों को तय करने में पीढ़ी दर पीढ़ी का काम किया। संज्ञा तथा छाया पक्ष के रूप में। सौर तंत्र में इसे दूसरे ढंग से कहा गया। यहां दोनों प्रकारों में अनुपात, आनुपातिक अंतर का बोध एवं उसके मापन को विकसित किया गया। अगले अंक में जारी.........।