शनिवार, 23 अगस्त 2014

सुझाव आमंत्रित हैं।

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सोमवार, 18 अगस्त 2014

श्री कृष्ण जी के नाम संदेश


कहा सुना जाता है कि आप सभी कलाओं में पारंगत एवं लीलाओं में महारत वाले महान व्यक्ति हुए। आपकी कथाएं अद्भुत हैं। वैसे तो चूंकि आप भगवान हैं अतः मैं यह नहीं कह सकता कि मैं जो कहने जा रहा हूं वह आपको पता नहीं होगा, फिर भी अगर ध्यान से हट गया हो तो इस समाचार पर विचार कर लें।
आपके संसार छोड़ने के अनेक वर्षों बाद भारत के लीला विशेषज्ञों को लगा कि आपकी अनेक लीलाओं की नकल करने में पूरा मजा नहीं आ रहा है। अतः उन्होंने सोचा कि सबको छकाने वाले नटवर नागर को ही क्यों न छकाया जाय? और इस बार ऐसा छकाया जाय कि फिर दुबारा आप किसी को छकाने की हिम्मत ही न करें। भक्त के अनुसार भगवान को चलना होता है न? भक्त भगवान के अनुसार क्यों चले?
कुछ लीला आपके चिर शत्रु प्राचीन संन्यासियों ने की और बाकी का काम संन्यासी फिल्म वालों ने पूरा कर दिया। इस काम के लिये आपने अपनी लीलाओं से जो संदेश दिया था, पहले उसकी पैरोडी बनाई गई फिर उसे फिल्मी गाने में सरसतापूर्वक परोसा गया, जैसे यह आपका ही उपदेश हो। विस्तार में कितना कहूं, संक्षेप में सुनिये- ‘कर्म किये जा फल की इच्छा, मत कर रे इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।’ मैं ने इसका संस्कृत श्लोक गीता में कम से कम 5000 बार खोजा लेकिन नहीं मिला। और तो और, एक ‘गीता सार’ नामक पोस्टर छपा, फिर तो उसके प्रिंट भी कपड़े पर आये। अब हर हिंदू नाई की दुकान पर लगभग टंगा रहता है क्योंकि अपने किसी नाई को प्रश्रय नहीं दिया।
बड़े चले थे न गीता में असली नकली संन्यास का मर्म बताने कि जो आग नहीं छूता और काम नहीं करता वह असली संन्यासी नहीं है, असली तो कुछ और होता है.............। उन्हीं आग न छूने वालों और कर्म न करने वालों ने आपकी गीता को अपना धार्मिक हथियार बना लिया।
अब लोग मेरे जैसे कम पढ़े लिखे संस्कृत वाले से पूछते हैं कि जो कर्मों में कुशलता को योग मानता हो, उस आदमी ने ऐसी बेवकूफी वाली बातें कैसे कीं? मैं क्या करूं? अब आपकी कथा सुनाने वाले कथा वाचक भी सीधी बात नहीं कहते कि आपने ऐसा नहीं कहा था। आपने तो कहा था कि कोई काम जब 5 कारकों/घटकों से संभव होता है तब केवल तुम केवल कर्ता हो कर पूरा हक कैसे जमा सकते हो? पैरोडी के मार में आपकी अपनी ही गीता के अपने विवरण कब के अंतर्ध्यान हो गये? ‘अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् ............’’ श्लोक की चर्चा कोई नहीं करता क्येंकि अगर ऐसा करने लगे तो कार्य कारण संबंध सबकी समझ में आ जायेगा? फिर महान संतों की महत्ता कैसे बनेगी?
कैसा रहा लीला का यह समाचार?

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

बोलते समय ही झूठ

‘‘वदतो व्याघात’’
भारतीय तर्क प्रणाली में कुछ बातों को ‘‘वदतो व्याघात’’ कहा गया है, जैसे कि- खरहे की सींग, आकाश कुसुम, आग से सिंचाई आदि। यह तो बोलते समय ही झूठ है। इस पर चिंतन मनन क्या?
ये उदाहरण गैर धार्मिक और गैर राजनैतिक हैं। इसलिये इन्हें बोलते ही झूठ समझ लेना आसान है लेकिन जैसे ही किसी राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक या सांस्कृतिक झूठ के उदाहरण को सामने लाया जाता है, उसे समझते हुए भी विरोध में स्वर उठने लगेंगे। ऐसा इसलिये कि उस झूठ के प्रति ऐसी श्रद्धा रहती है कि उस माने हुए सच, न कि वास्तविक के प्रति लोग सैकड़ों वर्षों से मरने-मारने पर उतारू रहे हैं। उस झूठ पर ही उनकी पहचान रही है। अतः मुझे मालूम है कि इस शृंखला के पोस्टों पर मुझे चारों तरफ से लानत-मलामत की सौगात मिलने वाली है।
सर्वहारा की तानाशाही में हर्ज क्या है? यह ऐसा ही सवाल है। सर्वहारा भला तानाशाही क्या करेगा? और तानाशाह भी कभी सर्वहारा हो सकता है क्या? सर्वहारा के पक्षधर होने का दावा करने वाले तानाशाहों की पोल खुल चुकी है। सर्वहारा की तानाशाही न हो सकती थी, न हुई। इस सरल बात को समझने की कोशिश करने वाला हर आदमी बुर्जुआ और पता नहीं क्या क्या सिद्ध कर दिया जायेगा।
इसके समानांतर एक उदाहरण लेते हैं। ‘‘रामराज्य एक आदर्श भारतीय समाज व्यवस्था है।‘‘ कौन सा राम राज्य? कब? कैसा था? और उस समय के लोग भी उससे प्रसन्न थे क्या? संपूर्ण न सही बहुसंख्यक और उससे जुड़े हुए लोग भी सही? कौन सा रामराज्य लाना है? पहले वाला या कि कोई नया ब्रांडेड? उसमें न रावण खुश, न सीता? एक कथा के अनुसार राम के लगभग पूरे परिवार ने आत्महत्या नहीं जल समाधि ले ली। यह थोड़ी कम प्रचलित कथा है। तुलसीदास जी ने इसे नहीं लिखा है। पुराने रामराज्य में तो न चुनाव होता, न ही मोदी जी जैसे वैश्य वर्णीय को सिंहासन मिलता।
मेरा तो पहला अपराध यही हो गया कि मैं सर्वहारा की तानाशाही और रामराज्य दोनों को समझने की जुर्रत कर रहा हूं। यह तो यूरोपीय एवं भारतीय दानों परंपरा की निष्पाप दिव्यात्माओं की स्थापनाओं पर सवाल है। लेकिन भक्त मित्रों मुझे दोनों ही वदतो व्याघात लगे, आकाश कुसुम की तरह या खरहे की सींग की तरह। यदि किसी को नहीं लगता वह मुझसे समझदार और दिव्य दृष्टि वाला हो सकता है। सपनों के सौदागर इसी तरह के वदतो व्यघात  को इतनी अधिक भावनात्मक उत्तेजना से पेश करते हैं कि उसे समझना ही गुनाह माना जाता है।
मूर्खता के आंदोलन के धार्मिक उदाहरण पर अगले पोस्ट में।