दो प्रकार की जातीय पहचान
मैं ने पहले भी लिखा है- असली जातीय पहचान की तलाश अनारक्षित समूहों में अब केवल शादी संबंध के समय होती है। आरक्षण पाने के लिये तो प्रमाण पत्र भी लेना होता है। शादी विवाह में 2 घेरे होते हैं, एक छोटा, जिसके बाहर और एक बड़ा, जिसके भीतर शादी की जाती है। इसमें भी अंदरूनी छोटे घेरे से और करीबी पहचान होती है।
इसके अतिरिक्त अगर जातियों की अंदरूनी पहचान के अंतर को समझना हो तो तीन प्रकार की पहचान चलन में है। एक में वह जाति अपनी पहचान किसी क्षेत्र से करती है दूसरी पहचान गोत्र/खाप या इसके पर्यायवाची नाम से और तीसरी पहचान गांव से बनती है।
यह गांव वाली पहचान मनुष्य को उसकी कबिलाई/खाप/गोत्र/आनुवंशिक रक्त संबंध आधारित पहचान को विभिन्न गांवों की पहचान दे कर कई टुकड़ों तोड़ देती है। जाति एक लेकिन उनके टुकड़े गांव आधारित। अनेक जातियां इसी पहचान पर जीती हैं।
दूसरी पहचान गोत्र, खाप वाली है। यह परंपरा केवल जाटों की हो, ऐसा नहीं है। यह लगभग सभी वर्णों की विविध जातियों में मिलती है। एक बात विचित्र है कि गांव आधारित पहचान वाले कलाप्रेमी, शिल्पविद्या में रुचि रखने वाले एवं सौम्य तथा कम कलहकारी होते हैं, जबकि खाप/गोत्र वालों में आज भी अपना वर्चस्व के विस्तार की भावना प्रबल होती है। वे अपने को विजेता और उच्च मानते हैं और सहिष्णु को कायर या मूर्ख।
खुले तौर पर नाम लेना उचित नहीं है लेकिन आप मिलायेंगे तो अनेक उदाहरण मिल जायेंगे। आप किसी भी जाति/बड़े समूह के अंतर्गत किन्ही दो की तुलना कर देख सकते हैं। यह समानता ब्राह्मण से डोम तक में मिलेगी।
मेरी समझ से यह प्रवृत्ति दो पकार की कबीलाई पसंद का अवशेष है। कुछ कबीले अपने में सिमट कर जीना पसंद करते हैं जबकि दूसरे लूटपाट करने, दूसरी की संपत्ति जानवर आदि पर कब्जा कर इलाके के विस्तार में।
इसी प्रकार धर्म में भी दो पसंद हैं- एक में हमारा धर्म हमारे लिये, उसमें दूसरों को शामिल क्यों करना वो अपने धर्म का पालन करे। यह सनातनी दृष्टि है। दूसरी धारा में अपने धर्म में दूसरों को शामिल करना आदर्श है। बौद्ध से आरंभ कर इस्लाम तक इसी आदर्श पर आज तक चले हैं। सनातनियों में भी स्मार्त जो बहुसंख्यक हैं , वे दूसरों पर प्रभाव जमाने की जरूरत नहीं महसूस करते जबकि अन्य नये या पुराने संप्रदाय वाले दूसरों को हराने के लिये झगड़े करते रहे हैं। सनातनियों में इस सिद्धांत पर विश्वास करने वाले शंकराचार्य सबसे बड़े नाम हैं।
मैं ने पहले भी लिखा है- असली जातीय पहचान की तलाश अनारक्षित समूहों में अब केवल शादी संबंध के समय होती है। आरक्षण पाने के लिये तो प्रमाण पत्र भी लेना होता है। शादी विवाह में 2 घेरे होते हैं, एक छोटा, जिसके बाहर और एक बड़ा, जिसके भीतर शादी की जाती है। इसमें भी अंदरूनी छोटे घेरे से और करीबी पहचान होती है।
इसके अतिरिक्त अगर जातियों की अंदरूनी पहचान के अंतर को समझना हो तो तीन प्रकार की पहचान चलन में है। एक में वह जाति अपनी पहचान किसी क्षेत्र से करती है दूसरी पहचान गोत्र/खाप या इसके पर्यायवाची नाम से और तीसरी पहचान गांव से बनती है।
यह गांव वाली पहचान मनुष्य को उसकी कबिलाई/खाप/गोत्र/आनुवंशिक रक्त संबंध आधारित पहचान को विभिन्न गांवों की पहचान दे कर कई टुकड़ों तोड़ देती है। जाति एक लेकिन उनके टुकड़े गांव आधारित। अनेक जातियां इसी पहचान पर जीती हैं।
दूसरी पहचान गोत्र, खाप वाली है। यह परंपरा केवल जाटों की हो, ऐसा नहीं है। यह लगभग सभी वर्णों की विविध जातियों में मिलती है। एक बात विचित्र है कि गांव आधारित पहचान वाले कलाप्रेमी, शिल्पविद्या में रुचि रखने वाले एवं सौम्य तथा कम कलहकारी होते हैं, जबकि खाप/गोत्र वालों में आज भी अपना वर्चस्व के विस्तार की भावना प्रबल होती है। वे अपने को विजेता और उच्च मानते हैं और सहिष्णु को कायर या मूर्ख।
खुले तौर पर नाम लेना उचित नहीं है लेकिन आप मिलायेंगे तो अनेक उदाहरण मिल जायेंगे। आप किसी भी जाति/बड़े समूह के अंतर्गत किन्ही दो की तुलना कर देख सकते हैं। यह समानता ब्राह्मण से डोम तक में मिलेगी।
मेरी समझ से यह प्रवृत्ति दो पकार की कबीलाई पसंद का अवशेष है। कुछ कबीले अपने में सिमट कर जीना पसंद करते हैं जबकि दूसरे लूटपाट करने, दूसरी की संपत्ति जानवर आदि पर कब्जा कर इलाके के विस्तार में।
इसी प्रकार धर्म में भी दो पसंद हैं- एक में हमारा धर्म हमारे लिये, उसमें दूसरों को शामिल क्यों करना वो अपने धर्म का पालन करे। यह सनातनी दृष्टि है। दूसरी धारा में अपने धर्म में दूसरों को शामिल करना आदर्श है। बौद्ध से आरंभ कर इस्लाम तक इसी आदर्श पर आज तक चले हैं। सनातनियों में भी स्मार्त जो बहुसंख्यक हैं , वे दूसरों पर प्रभाव जमाने की जरूरत नहीं महसूस करते जबकि अन्य नये या पुराने संप्रदाय वाले दूसरों को हराने के लिये झगड़े करते रहे हैं। सनातनियों में इस सिद्धांत पर विश्वास करने वाले शंकराचार्य सबसे बड़े नाम हैं।