पिछले 200 वर्षों से सनातन धर्मावलंबियों ने अपने लिये धर्मशास्त्र का पुनः संस्करण नहीं निकाला। इसके कारण एक ओर अनेक कालबाह्य बातें बेमतलब चल रहीं हैं तो दूसरी कुरीतियों को बल मिल रहा है। अतः एक नये संस्करण हेतु हिम्मत करने की जरूरत है। प्रस्ताव आपके समक्ष है। पूरी सामग्री नये पृष्ठ अभिनव धर्मशास्त्र पर देखें । आपका - ब्लॉग लेखक