बबन देवी
बबन देवी से मेरा भावानात्मक लगाव विकसित होने लगा। इसे विकसित होने में 5 साल लगे। एक दिन मैं उनके समक्ष सारे अहंकार तोड़कर विसर्जित होने वाला था। सोचा था उन्हें कपड़े समर्पित करूँ और पैर छूकर प्रणाम करूँ (वे मेरे प्रणाम के लिए थोड़े ही बैठी रहतीं। वे चल बसीं) और प्रार्थना करूँ कि .............................
हे देवी! मुझे समझ में आ गया कि दुनिया एक सराय है केवल ठहर कर जाने के लिए ही नहीं अन्य मामलों में भी। पूरी विवाह संस्था लाभ हानि, उतराधिकारत के लिए बनी हुई है। यौन सुख अल्पकालिक रूचि का विषय है। आपसी प्रेम तो आते दुर्लभ है और दंपति के बीच प्रेम के दुश्मन अनेक है। ये दुश्मन बाहरी कम घरेलू अधिक होते हैं। आरप तो धन्य हैं क्योंकि आपने एकतरफा, आदर्श, आदरणीय सर्व स्वी कार्य प्रेम किया। जवानी से प्रौढ़ावस्था तक बीवी बच्चे से प्रेम निंदनीय है, स्वार्थ है और बुढ़ापे में अगली पीढ़ी से दुश्मनी फिर प्रेम का आपका लग सकता है कि ऐसी कान सी दुर्लभ बात समय कहाँ है। हुई। हाँ, मेरे लिए हुई। बबन देवी गया सराय की तवायक थी। मैंने देरकर दी कह नहीं सका। ववन देवी बुढ़ापे में (जब मेरी उनसे भेंट हुई) इतनी खूबसूरत थीं तो जवानी में कुछ और हीं रही होंगी। उनकी ठुमरी और गजल गान की मशहुर थी। किराए में दो मंजिले मकान के उपर रहती थी। सराय रोड, गया में वे एक खाश सख्तसियत थी। वे तवायक होकर भी किसी घेरलू औरत से कम नहीं थी। अच्छा खाना बनाना सलीके से कपड़े पहनना। मेरे समक्ष बाद के दिनों में कपड़े का बहुत ख्याल नहीं रखती थी। शरीर थक रहा था।
बबन देवी का संबंध मगध वि॰वि॰ के एक पदाधिकारी से ही आजीवन रहा। वे श्रीमान जन्म से तो ब्राह्मण थे किंतु अवगुणों की कोई कभी उन्होंने नहीं रखी। बबन देवी ने दिन दिया तो दे दिया, कोठे पर ज्यादा तो लंपट ही जाते हैं। आप बबन देवी का प्रतिका इसी से समझ सकते हैं कि सराय में तो उनकी सच्चरित्रता की ख्याति थी है। अपने प्रेमी के घर पर भी उनके पुत्र, पुत्री, बहू बच्चे उनका पूरा आदर करते थे। भले ही घर की मालकिन नहीं थी, परंतु नैतिक अभिभावक थीं और मुसीबत में अपनी संगीत पेशे की कमाई भी न्योछावर कर देती थी।
बबन देवी ने स्वयं संतान उत्पन्न नहीं करने का साथ हीं अपने भतीजे-भतीजी सबको वेश्यावृत्ति से बाहर निकालने का निर्णय लिया था। भतीजे को जमीन खरीद कर दी और गाँव में रहकर खेती करने को कहा। भतीजी को अच्छे से पढ़ाया संभवतः उसे ठण्ज्मबीण् किया था या कोई डिप्लोमा कोर्स उनका गाँव पुराने आरा (शाहाबाद) जिले में है और मैं भी उसी जिले का हूँ। दोनों का कार्यक्षेत्र, रोजगार क्षेत्र गया जिला, तो इस बहाने भोजपुरिया लोगों की जिलादारी भी हो जाती थी।
मेरे उपर उमरदार औरतों का प्यार अद्भूत ढंग से बरसता रहा है। मुझे पुत्रवत स्नेह करनेवाली महिलाएँ कुछ साल पहले तक मिलती रहीं। सामाजिक कामों में व्यस्त रहने के दौरान मेरे भोजन, वस्त्र, स्वास्थ्य एवं शरीर रक्षा के प्रति तो थे सजग रही ही उनके मन में यह सजगता बनी रहती थी कि यह युवक कहीं धोखा न खा जाए, किसी मुसीबत में न पड़ जाए क्योंकि मैं महान मूर्ख आदमी हूँ। अक्ल औसत से थोड़े कम है, कभी -कभी अहंकार चढ़ता है तो अपने को बड़ा काबिल आदमी भी मान लेता हूँ। दुनिया को समझने और कुछ करने की इच्छा ने मुझे इतना वात्सल्य दियाया।
एक बार मेरा पैर टूटा था। बबन देवी मिलने आई घर पर न केवल बैठी बल्कि उनका हाथ मेरे सर को सहलाने के लिए आगे बढ़ा, परिचय नया था। सामाजिक कार्यकर्ता कालेज का अध्यापक सराय में सपलीक घूमने वाले दुस्साहसी और अनुशासित लेवक, पुलिस के अपराध अनुसंधान विभाग से मान्यता प्राप्त, आ॰ए॰एस॰ आई॰पी॰एस॰ पदाधिकारियों के साथ उठने-बैठने वाला ये सब बातें वात्सल्य प्रवाह में विध्न पैदा कर रही थीं। ब्राह्मणों के जातीय अहंकार की असलीयत से पूणतः परिचित बबन देवी सहज मुस्कुरा रही थी। उन्होंने मेरे पास खड़े होकर मेरा कंधा पीठ एवं पाँव सहलाया। दुआएँ दी।
उलाहना भी छोड़ती गई पाठक जी कलेक्टर एवं कमीश्नर के कहने पर मैंने भतीजी को वेश्या के घर का बताया जबकि मैंने उसकी शादी कर दी है। उमीद थी कि कोई नौकरी मिल जाएगी सो वह भी नहीं मिली और यह जो आपने आँगन बाड़ी केन्द्र खुलवाया है, इसमें कौन जाएगा पढ़ने और कौन सी नाचने वाली जाएगी पढ़ाने? एक लड़की जो एम॰ए॰ हिन्दी में पढ़ रही थी मैं उसके घर गया। संयोग से उसे इस छोटी नौकरी की जरूरत नहीं पड़ी वह हाई स्कूल में टीचर हो गई।
एक बार बबन देवी के घर गए काफी दिन हो गए तो फिर उलाहना। क्या पाठक जी! अभी भी मुझ से मिलने में शर्म आती है? मैं क्या बोलता? दरअसल मैं जब भी कोठे पर जाता तो विधिवत् एक डरपोक की तरह जाता। यह सावधानी अमृतलाल नागरजी के उपन्यास थे कोठे बालिया, अमृता प्रतिमा का काल गर्ल एवं संस्कृत की सुप्रसिद्ध पुस्तक कृट्टनीमतम पढ़कर ।ण्ैण्भ्ण्प् नामक सरकारी मान्यता प्राप्त (किंतु गया में पूर्णतः विवादास्पद) संगठन के जिला सचिव की हैसियत का कवच पहन कर जाता। इसके बाद भी तीन संरक्षण खोल और शहर के संभ्रात महिला संगठन की बुर्जुग अनुभवी महिलाओं का संरक्षण, पास के रिहायसी इलाके के वेश्यावृत्ति निरोधक संगठन के कार्यकर्ताओं के माध्यम से संवाद, अंत में अपनी प्रखर एवं दुस्साहसी पत्नी की सहभागिता एवं समर्थन की व्यस्था भी साथ थी।
डरपोक वाली बात में इस मामले में लागू नहीं होती एक व्यवहारिक दृष्टि थी कि कोठे पर जाने के पहले उस महिला नाचने वाली को खबरकर दी जाय और दिन के 12 बजे से 3 बजे के गैर कारोबारी पारिवारिक/व्यक्तिगत समय में जाया जाय। इस समय आम तौर पर मुजरा सुनने वाले या देह-सुख भोगने वाले नहीं आते फिर भी स्थाई संबंध वाले ग्राहक तो आही जाते थे।
बबन देवी के यहाँ तो यह खतरा भी नहीं था। या तो बे समारोहों/रेडियों पर गाती या उनके प्रेमी एवं अन्य परिवारों में सम्मानित सलाहकार बुजुर्ग की तरह जाती है।
मैं स्वंय लज्जित हो गया। सोचा एक बार हिम्मत करके अपने मन की सारी दुविधा उनसे कह दूँगॉ/ आप तो मेरी माँ समान हैं, वंदनीय, पूजनीय है। मेरा घर कब आपके लिए कब बंद हुआ परंतु अवसर चूक गया, बबन देवी इस दुनिया से कर्तव्य पूरा कर विदा हो गई। क्षमा प्रार्थना सहित, उन्हें प्रणाम।