tag:blogger.com,1999:blog-5651802831794528760.post5410624523342880827..comments2023-03-25T07:15:30.671-07:00Comments on बहुरंग: रसो वै सः वह रस हैRavindra Kumar Pathakhttp://www.blogger.com/profile/12945754377921700571noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5651802831794528760.post-50781111445177021452021-01-25T23:36:35.990-08:002021-01-25T23:36:35.990-08:00रसौ वै सः इस वेद वाक्य का अर्थ जो (दास्य साख्य वात...रसौ वै सः इस वेद वाक्य का अर्थ जो (दास्य साख्य वात्सल्य माधुर्य तथा प्रेम) रस से परीपुर्ण है.और वे है भगवान श्रीकृष्ण जिनके अंदर यह पांचो रस 100 प्रतीशत है. जबकी सामान्य जीव के अंदर वे अंशमात्र है. इसलीये ये बद्धजीव कदापी ब्रम्ह नही बन सकता.अपीतु बद्धजीव भगवान श्रीकृष्ण की प्रेममयी सेवा करके चिरकाल के लीये उनके गोलोक को प्राप्त कर सकता है. Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09710025019221589271noreply@blogger.com