tag:blogger.com,1999:blog-5651802831794528760.post622885424811855125..comments2023-03-25T07:15:30.671-07:00Comments on बहुरंग: चैता गायन: यक्ष परम्परा का अनुष्ठानRavindra Kumar Pathakhttp://www.blogger.com/profile/12945754377921700571noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5651802831794528760.post-76006637343221321682014-05-06T20:20:43.003-07:002014-05-06T20:20:43.003-07:00दरअसल तंत्र साधना को कुछ लोगों ने लोक सुलभ बनाया त...दरअसल तंत्र साधना को कुछ लोगों ने लोक सुलभ बनाया तो कुछ लोगों ने उस पर कब्जा जमाने के लिए जटिल। यह पहली धारा के लोगों द्वारा किया गया। मैंने समाज ऐसा स्वीकृत और प्रचलित ऐसी अनेक विधियों को खोजा और उसके शास्त्रीय संदर्भों को जोड़ कर प्रस्तुत करता हूँ। Ravindra Kumar Pathakhttps://www.blogger.com/profile/12945754377921700571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5651802831794528760.post-65907372794778597882014-05-06T04:31:30.027-07:002014-05-06T04:31:30.027-07:00आपका चैता विश्लेषण अद्भुत है,पहले न कभी सुना था न...आपका चैता विश्लेषण अद्भुत है,पहले न कभी सुना था न जाना था. चंचल चित को साधने का यह तो सर्व -सुलभ साधना का अज्ञात मार्ग है.क्योंकि आज जो गाते है वे इस अवरूप को जानते नहीं. वैदिक एवं बौद्ध का सम्मिलित स्वरुप है चैता, जैसा आपने दर्शाया है, केवल ध्वनि आरोह- अवरोह का अंतर है कुछ क्रियाओं के साथ.तंत्र में प्रयुक्त मंडलाकार गति इसे तंत्र साधना का भी माध्यम बना देती है.Dr. VIJAY PRAKASH SHARMAhttps://www.blogger.com/profile/16885591501076763983noreply@blogger.com